छोड़ दिया देखना कबसे
अपना आईना हमने!
बड़ा बेदर्द हो गया है,
पलट के पूछता है ,
कौन हो,हो कौन तुम?
पहचाना नही तुम्हे!
जो खो चुकी हूँ मैं
वही ढूँढता है मुझमे !
कहाँसे लाऊँ पहलेसे उजाले
बुझे हुए चेहरेपे अपने?
आया था कोई चाँद बनके
चाँदनी फैली थी मनमे
जब गया तो घरसे मेरे
ले गया सूरज साथ अपने!
(ये एक पुरानी रचना है...)
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14 comments:
अच्छी अभिव्यक्ति.मैं अगर कुछ कहूं तो ये के:
"मैं अपने आप से घबराता नहीं हूं,
पर खांम्खां यूं सरे आईना जाता नहीं हूं."
Obliviously स्त्री सुलभ आदत,आईना देखना मेरे लिये टेडी खीर भी तो है!
अरे जनाब ,ये आईना भी अंतर्मन है ...उसमे झाँकने वाला भी मन ही है , जो , उजाले खो चुका है ..अपनाही मन ,अपने आपको पहचान लेनेसे इंकार कर रहा है ...! ये हुई ना मज़ेदार बात...! आ गए ना,तुंरत 'स्त्री सुलभ' भावनाओं पे...वैसे ये भावनाएँ होना जुर्म तो नही...!!
लेकिन, ऐसा अंतर्मन तो किसी पुरुषका भी हो सकता है...जो,बुझा-सा हो,हैना??
aaj aapki sabhi rachnayen padh daali.bahut achcha laga aapke bhavon ke saath behkar meri dil se duayen
bahut sundar
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http://vijnaan.charchaa.org
यकींनन रूह का तो कोई Gender नहीं होता,पर जिस चोले में हम भटक रहे हैं, उसकी मर्यादायें तो निभानी ही होंगीं.
वैसे भी,
"हुस्न-ए-गुल आईने में नज़र न आयेगा,
बेज़ुबां हस्ती है,बेचारा क्या बतायेगा."
bahut hi lajawaab rachna.
आइना आप देखें या न देखें, एक बात तै है, जो तस्वीर आपने लगायी हैं(ktheLeo), वो है बहुत खूबसूरत लेकिन कमजोर दिल आइना घबरा कर बिखर भी सकता है.... हा हा हा हा
रही बात इस कविता की तो बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति..
अच्छी लगी रचना..
सुन्दर...
चलिये तस्वीर जैसी भी हो कम से कम, इस में इतनी तासीर तो निकली के इसका ज़िक्र हुआ.
वैसे तस्वीर की बात से एक बहुत उम्दा शेर याद आया,(Obviously, मेरा नहीं है!)
कुछ यूं के:
"तुझमें जो बात है,वो बात नही आयी है,
ये तस्वीर क्या, किसी गैर से खिचवाई है."
Sahee kaha,leo ji...ise kheenchne, khud "leo"(matlab cheeta,) to gaya nahee hoga..!
ha,ha,ha !
leo ji, शायद यही संबोधन वाजिब होगा, हाँ तो तस्वीर की बात छिड़ी है और एक ख़याल कुमुनाया है, कह ही देती हूँ,
ये तस्वीर देखी औ तेरा ज़िक्र हो गया
ग़र सामने आ जाओ तो अफ़साने बन जायेंगे...
यह एक निराशा वादी कविता है .. और इसमे कोई सामाजिक सरोकार भी नही है.. इसलिये इसकी तारीफ नही करूंगा ,हाँ इस बात की तारीफ ज़रूर कि जैसा मै सोच रहा था आपकी भाषा उतनी खराब नही है देखिये इसमे भाषागत एक भी गलती नही है.. बधाई
शमा जी,
ये चीता नहीं बबर-शेर है...
हा हा हा हा ...
आया था कोई चाँद बनके
चाँदनी फैली थी मनमे
जब गया तो घरसे मेरे
ले गया सूरज साथ अपने......
Ajeeb si sachchai...
अदाजी ...तस्वीर होगी शेरे -बबर की ...लेकिन लियो तो leopard का short from है ,हैना ? तो हम इसी दुविधा मे रह गए ...! और जो तेज़ी चीते मे होती है वो शेर मे नही ..उस मे तो होती है शाही शान ...! अब ये फ़ैसला कौन करेगा ? तस्वीर मे से शेर तो निकल के आ नही सकता ...वरना ,और कुछ हो न हो हम सारे डिलीट हो जायेंगे , 'सदा 'के लिए ...ये 'अदा' कुछ ऐसी रहेगी...! वैसे मज़ेदार सँवाद चल रहा है...!
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