जलती ssss रही, जलतीही रही,
ना उजाला हुआ,
ना अँधेरा गया,
वो जलती रही,
ज्योती जलती रही...
रात रुक-सी गयी,
चांदभी ना खिला,
टिमटिमाये चंद तारें कहीं,
पर रौशनी नही,
वो जलती रहीssssss
ना मंज़िल दिखी,
ना राहेँ मिली,
ना हवासे बुझी,
ना तूफाँ से बुझी,
आह उसने भरीssssss
उसी आह्से वो बुझी....
वो खुदही बुझी,
वो खुदही बुझीssssss
ज्योती बुझही गयीssssss
ज्योती बुझही गयी,
तूफानसे नही, वो खुदही बुझी...
आखरी साँस तक
आखरी आस तक ,
उसने आहें भरी,
उसने आहें भरी ssssss,
जब सवेरा हुआ,
उसने देखा नही,
वो रहीही नही,
वो रहीही नही sssss
वो रहीही नही sssss
इस गीतमे मन्द्र सप्तक से लेके तार सप्तक का प्रयोग किया जा सकता है...बल्कि तभी...एक "haunting" qaulity इस गीतमे आयेगी, ऐसा मुझे महसूस होता है.....मै ना तो composer हूँ, ना संगीत का ज्ञान रखती हूँ...सिर्फ़ गुनगुनाके देखा तो ऐसा महसूस हुआ...
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4 comments:
wah shama ji achcha geet likhti hain aap.bahut sunder rachna.
जैसा आप्ने इन्गित किया इस गीत मे सन्गीत बद्ध हो शस्त्रिय धुन मे गाये जाने की सम्भाव्नायेन बहुत हैन . ऐसा प्रयास किया जाना चाहिये .
शमा को मुश्किल भूलना जो दे सतत प्रकाश।
बचा के रखना लौ सहित सपनों का आकाश।।
और
लौ थरथरा रही है बस तेल की कमी से।
उसपर हवा के झोंके है दीप को बचाना।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
न आंधी से बुझी न तूफ़ान से बुझी और जब बुझी तो खुद की आहों से बुझी /दर्दीली रचना /
एक निवेदन -न कम्पोजर हूँ न संगीत की ज्ञाता /कम्पोजर वाली बात तो समझ में आती है किन्तुमंद्र सप्तक और तार सप्तक का ज्ञाता यह कहे की मै संगीत में कुछ नहीं जनता ,समझ से परे है या कहने वाले की महानता है हर कोई मंद्र ,मध्य या तार सप्तक की बात नहीं कर सकताकृपया इतना ही बता दिया होता यह किस राग पर आधारित है ,किस राग के स्वर लगेंगे /क्योंकि संगीत का ज्ञान नहीं है यह बात तो आपकी कोई नहीं मानेगा
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