Monday, March 23, 2009

खोयीसी बिरहन...

खोयीसी बिरहन जब
उस ऊँचे टीलेपे
सूने महल के नीचे
या फिर खंडहर के पीछे
गीत मिलन के गाती है,
पत्थर दिल रूह भी
फूट फूट के रोती है।
हर वफ़ा शर्माती है
जब गीत वफ़ाके सुनती है।
खेतोमे,खालिहानोमे
अंधेरोंमे याकि
चांदनी रातोमे
सूखे तालाब के परे
या नदियाकी मौजोंपे
कभी जंगल पहाडोंमे
मीलों फैले रेगिस्तानोमे
या सागरकी लहरोंपे
जब उसकी आवाज़
लहराती है,
हर लेहेर थम जाती है
बिजलियाँ बदरीमे
छुप जाती हैं
हर तरफ खामोशी ही
खामोशी सुनायी देती है।
मेरी दादी कहती है
सुनी थी ये आवाजें
उनकीभी दादीने॥

9 comments:

mark rai said...

खेतोमे,खालिहानोमे...
अंधेरोंमे...
चांदनी रातोमे....
shamaa jee mera to jiwan yahi bita hai ..ye sab apna lagata hai ...
कभी जंगल पहाडोंमे....
मीलों फैले रेगिस्तानोमे....
yahi to asali natural beauty hai ...waha aajadi bhi hai ..aur pollution ka koi laphada bhi nahi ...sochta hoon jahan shukun mile wahi swarg hai ...aapne kya likha ..shabd kam pad rahe hai ....aapaka koi bhi url ho mai to dhudh nikaluga...jajba hai shayad...

Pandit Ashraf Ali Jalori said...

nice line

BrijmohanShrivastava said...

एकदो मर्तवा इंटरनेट पर टाईप किया किन्तु ब्लॉग नहीं खुल पाया /आखिर आज गूगल पर टाईप किया /यह ब्लॉग शुरू से नहीं पढ़ा था और वो क्रमश :था अत उसे छोड़कवितायेँ पढी /दिल की राहें, वो घर बुलाता है और यह ""खोई सी बिरहन "" रचनाओं में एक दर्द ,एक कशिश ,एक पीडा ,खोई हुई यादें ,दिल का भटकाव स्पष्ट झलकता है / मसलन पत्थर दिल रूह भी फूट फूट के रोती है (क्षमा करें हमारे यहाँ आत्मा का न तो शरीर होता है न वह हंसती है न रोती है बस शरीर बदलती है खैर ) मेरी दादी कहती है की उनकी दादी ने भी आवाजें सुनी थी मतलब बात कितनी पुरातन हैदूसरी रचना में वह घर स्वप्न में आना जो अब वैसा नहीं है स्पष्ट है घर का पुनर निर्माण हो चुका होगा लेकिन बचपन में जो घर देखा था और जिसकी छवि ध्यान में बसी हुई है वही घर दिखलाई देता है ,यह बात कोई भी लेखक ,विद्वान ,कवि ,साहित्यकार कल्पना से तो कह ही नहीं सकता यह तो वाकई अनुभव की ही बात हैतीसरी बात पहले उनकी यादों के उजाले रहना और अब साया तलक न दिखाई देना -एक ऐसी घुटन ,एक तड़पन ,दिल दुखाने वाली रचनाएँ

BrijmohanShrivastava said...

pahalee laain "the light by a lonely paath wabat hai

श्यामल सुमन said...

अच्छे भाव हैं। कहते हैं कि -

मैं जो गम खा जाता हूँ, मुझको खाये जाता है गम।
और क्या खाऊँगा दुनियाँ भर के गम खाने के बाद।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

Anonymous said...

bahut achchha likha hai aapne.. badhaiyan aur hindi blog jagat main aapka hardik abhinandan..

- Mohan Joshi (MoJo)
http://mojowrites.wordpress.com

अभिषेक मिश्र said...

हर वफ़ा शर्माती है
जब गीत वफ़ाके सुनती है।
बढ़िया कविता. बधाई.

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

bahut sundar, narayan narayan

'sammu' said...

HAR VAQT KEE VIRHAN NE HAI SUNEE YE SAREE SADAYEN VAADEE ME
TEREE DADEE KEE BHEE DADEE NE MEREE DADEE KEE BHEE DADEE NE

HAR VAQT KEE DULHAN KO HAI RAHA ARMAN KI KOYEE AAYEGA
HAAN KABHEE KABHEE HASHIL HOTA ARMAN KISEE KEE VADEE ME