परेशाँ हैं, चश्मे नम मेरे,
कि इन्हें, लमहा, लमहा,
रुला रहा है कोई.....
चाहूँ थमना चलते, चलते,
क़दम बढ्तेही जा रहें हैं,
सदाएँ दे रहा है कोई.....
अए चाँद, सुन मेरे शिकवे,
तेरीही चाँदनी बरसाके,
बरसों, जला रहा कोई......
शमा
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5 comments:
अए चाँद, सुन मेरे शिकवे,
तेरीही चाँदनी बरसाके,
बरसों, जला रहा कोई......
kaaphi badhiya likha hai ..dil me utar gayi ye rachna..
Pehli post hata dee hai kyonki usme naamkaa spelling galat tha...shayd wo kisee aurke liye thee, jo yahan aa gayi..maafee chahti hun..!
yakinan ahsason ke sagar mein khoob lahren uthti hai jinmein se kuch lahren ret ko chiirti hui door nikal jati hai or shabdon ka roop le leti hai..in shabdon ko sajana ek kavi ki kala hoti hai .
aapke bhaav bahot sundar or yatarthparak hote hai
jaise aapki ek kavita ki ye panktiyan
अब सेहर होनेको है ,
ये शमा बुझनेको है,
जो रातमे जलते हैं,
वो कब सेहर देखते हैं?
बहुत अच्छा लिख रही हो. भवन करे आपकी कलम सदा चलती रहे
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