Thursday, March 19, 2009

दुनियादारी और पगली....

"हमने छोड़ दी सारी
दुनिया और दुनियादारी,
किसी एकके लिए,
जिनके लिए छोडी,
वो बड़े दुनियादार निकले,
पलटके हँसी उडाई,
बोले, वो सकते नही,
छोड़, दुनिया उनकी,
एक पगलीके लिए.....
मैही तो हूँ वो पगली,
वो परसों फिर एकबार,
दोहरा गए...बार बार कह गए...."

शमा....

"हमने छोड़ दी सारी
दुनिया और दुनियादारी,
किसी एकके लिए,
जिनके लिए छोडी,
वो बड़े दुनियादार निकले,
पलटके हँसी उडाई,
बोले, वो सकते नही,
छोड़, दुनिया उनकी,
एक पगलीके लिए.....

सबक सीख सको तो सीखना.
दोस्तों, मत लगना,अपनी दुनिया,
दाँव पे किसी एक के लिए,
दुनियामे कोई नही पागल ऐसा ,
जो छोड़ दे अपने दुनिया ,
किसी एक पागल के लिए....

असलमे येही पूरी कविता थी...

शमा

2 comments:

Anonymous said...

हमने छोड़ दी सारी
दुनिया और दुनियादारी,
किसी एकके लिए,
जिनके लिए छोडी,
वो बड़े दुनियादार निकले....
plz bataaiye n wah koun khushnashib hai ...

'sammu' said...

natha nasheeb nathaa dost tujhse tab milte
jab tere me bhee kaheen pooree sama bakee thee .

daanv par too bhee vahee pata jo laga tha diya
bhav bhee pata vahee bhav jo de baitha tha .

ab to too seekh gaya zindgee ke sab nushkhe
fir lagayen bhe to kya kya hai chala jayega

janta hoon ke hai kuch door hamsafar lekin
chand lamhon ka safar darz to rah jayega