"जब एक बूँद नूरकी,
भोलेसे चेहरे पे किसी,
धीरेसे है टपकती ,
जब दो पंखुडियाँ नाज़ुक-सी,
मुस्काती हैं होटोंकी,
वही तो कविता कहलाती!
क्यों हम उसे गुनगुनाते नही?
क्यों बाहोंमे झुलाते नही?
क्यों देते हैं घोंट गला?
क्यों करतें हैं गुनाह ऐसा?
ऐसा, जो काबिले माफी नही?
फाँसी के फँदेके सिवा इसकी,
अन्य कोई सज़ा नही??
किससे छुपाते हैं ये करतूते,
अस्तित्व जिसका चराचर मे,
वो हमारा पालनहार,
वो हमारा सर्जनहार,
कुछभी छुपता है उससे??
देखता हजारों आँखों से!!
क्या सचमे हम समझ नही पाते?
आओ, एक बगीचा बनायें,
जिसमे ये नन्हीं कलियाँ खिलाएँ,
इन्हें स्नेह्से नेहलायें,
महकेगी जिससे ज़िंदगी हमारी,
महक उठेगी दुनियाँ सारी...
मत असमय चुन लेना,
इन्हें फूलने देना,
एक दिन आयेगा ऐसा,
जब नाज़ करोगे इन कलियोंका......"
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3 comments:
एक बगीचा बनायें,
जिसमे ये नन्हीं कलियाँ खिलाएँ,
इन्हें स्नेह्से नेहलायें......
beautiful thinking
इन्हें स्नेह्से नेहलायें,
महकेगी जिससे ज़िंदगी हमारी,
महक उठेगी दुनियाँ सारी...
Sunder.
hamne to pyar kiya har kalee se
fool paye hain ,mahak payee hai
nonchne wale tujhe pyar ka ehsas naheen
hamne ummeed kee konpal se saza payee hai .
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