आज नीरज जी कविता पढ़ आयी...सच का जो दम भरते हैं...उनके बारेमे सच सुनतेही तिलमिला उठ ते हैं....!कितना सच है....
पोहोचीं किसीके पनाहमे,एक कोमलांगी,
नयी, किरण थी, दुनियादारीसे अनजान थी,
सुबह एक भिक्षुक आया, कुछ दान दे देवी,
उससे कहने लगा, कहके के अभी आयी,
वो रोटी लाने अन्दर गयी, पीछेसे आवाज़ आयी,
कह दे, घरमे कुछ नही ,कह नही सकती?
पर घरमे तो रोटी...खामोश, घरमे कुछ नही!
वो भरमा गयी, वो कहाँ आ गयी थी?
जैसे, जैसे दिन बीते, बात समझमे आने लगी,
वो सुकुमार भोली, झूठके डेरेमे,आ पोहोंची थी
बंदिशोंकी ऊंची, ऊँची दीवारें थी, कितनी घुटन थी!
चाहा कि कुछ ताज़गी पाए, उसने इजाज़त पूछी,
ना, ना, यहाँ ये चलन नही, तुम अभी समझी नही?
तू इन्हें पार नही कर सकती,आनेके पेहेले सोंच लेती?
इस बातको बरसों बीते, उसकी तो तब मत मारी गयी थी॥
क्या नाम दें उस नादानीको,विनाशकाले विपरीत बुद्धी !!
शमा
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1 comment:
jis ghar me lage aise bandhan rotee bhee kisee ko de na sake
us ghar ko sajaye hee rakh too, too pyar kisee ko kya dega.
sachchayee kee us unchayee ka too lakh sila tahreer kare
too pyar kee us sachchayee ka koyee bhee sila kab tak dega.
nadanee agar tha kar baitha nadan tha muhabbat fir kyoon kee
ye janam janam ka hai bandhan , jo aur bandha ho kya dega .
ummeed bharam sapne vade ye pyar pahelee karte hain
jahan himmat kee darkar lage vo pyar too kisko kya dega
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