Sunday, August 1, 2010

हमारी आँखें..

ना,ना,न झाँको इनमे,
बहुत बोलती हैं हमारी आँखें,
लब चाहे झूठ बोल जाएँ,
चुगलबाज़ हैं हमारी आँखें..
कुछ राज़ हैं गहरे,गहरे ,
जिन्हें खोलती हैं हमारी आँखें..

12 comments:

इस्मत ज़ैदी said...

आंखों की सच्ची परिभाषा

ktheLeo (कुश शर्मा) said...

वाह कमाल की अभिवयक्ति! बहुत ही सुन्दर मज़ा आया पढकर,वाह!

वाणी गीत said...

आँखें बहुत बोलती है ...!

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

इसीलिए तो आंखों को दिल का आईना भी कहते हैं.

P.N. Subramanian said...

बहुत अच्छी लगी.

M VERMA said...

जुबा बेशक कसमें खा ले
सच मगर बयाँ कर जाती हैं आँखे

बेहतरीन रचना

VIVEK VK JAIN said...

aankhe bejubani me bhi bahut kuch kah jati h jo juban nhi kah pati!

nice post!

VIVEK VK JAIN said...

aankhe bejubani me bhi bahut kuch kah jati h jo juban nhi kah pati!

nice post!

VIVEK VK JAIN said...

aankhe bejubani me bhi bahut kuch kah jati h jo juban nhi kah pati!

nice post!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आँखें सच ही बहुत कुछ कह जाती हैं ....सुन्दर प्रस्तुति

अनामिका की सदायें ...... said...

थोड़े शब्दों में ही बहुत कुछ कह दिया.

मुकेश कुमार तिवारी said...

शमा जी,

आपने यह तो ठीक ही कहा कि एक छोटी सी नज्म जो आँख के बराबर हो तो पूरी जिन्दगी कैसे गुजरेगी कहा नही जा सकता।

मुझे इसी बात पे फिल्म आँखें का मशहूर गीत याद आ रहा है " लब कुछ भी कहे उससे हकीकत नही खुलती, इंसान के सचझूठ की पहचान हैं आँखें"

सादर,

मुकेश कुमार तिवारी