मैं तेरे दर से ऐसे गुज़रा हूं,
मेरी खुद की, मज़ार हो जैसे!
वो मेरे ख्वाब में यूं आता है,
मुझसे ,बेइन्तिहा प्यार हो जैसे!
अपनी हिचकी से ये गुमान हुआ,
दिल तेरा बेकरार हो जैसे!
परिंद आये तो दिल बहल गया,
खिज़ां में भी, बहार हो जैसे!
दुश्मनो ने यूं तेरा नाम लिया,
तू भी उनमें, शुमार हो जैसे!
कातिल है,लहू है खंज़र पे,
मुसकुराता है,कि यार हो जैसे!
7 comments:
मैं तेरे दर से ऐसे गुज़रा हूं,
मेरी खुद की, मज़ार हो जैसे!
वो मेरे ख्वाब में यूं आता है,
मुझसे ,बेइन्तिहा प्यार हो जैसे!
अपनी हिचकी से ये गुमान हुआ,
दिल तेरा बेकरार हो जैसे!
परिंद आये तो दिल बहल गया,
खिज़ां में भी, बहार हो जैसे!
ओह्……………क्या जज़्बात उभर कर आये हैं………आह!हर शेर दिल मे उतर गया।
Oh!Wah! Bas itnahi kah sakti hun!
बहुत खूबसूरत गज़ल...
हर एक शेर अपने आप में ख़ास है ..!
अश’आर के भाव बहुत अच्छे लगे.
अपनी हिचकी से ये गुमान हुआ,
दिल तेरा बेकरार हो जैसे!
वाह .. प्रेम की क्या इंतेहा है ...
हर शेर लाजवाब है सर .....
vaah bahut acchha laga yahaan aakar bhi...
Post a Comment