Thursday, August 12, 2010

खता किसने की?

एक पुरानी रचना जिसे 15 अगस्तके पर्व पे पुनः पोस्ट कर रही हूँ ...

खता किसने की?
इलज़ाम किसपे लगे?
सज़ा किसको मिली?
गडे मुर्दोंको गडाही छोडो,
लोगों, थोडा तो आगे बढो !
छोडो, शिकवोंको पीछे छोडो,
लोगों , आगे बढो, आगे बढो !

क्या मर गए सब इन्सां ?
बच गए सिर्फ़ हिंदू या मुसलमाँ ?
किसने हमें तकसीम किया?
किसने हमें गुमराह किया?
आओ, इसी वक़्त मिटाओ,
दूरियाँ और ना बढाओ !
चलो हाथ मिलाओ,
आगे बढो, लोगों , आगे बढो !

सब मिलके नयी दुनिया
फिर एकबार बसाओ !
प्यारा-सा हिन्दोस्ताँ
यारों दोबारा बनाओ !
सर मेरा हाज़िर हो ,
झेलने उट्ठे खंजरको,
वतन पे आँच क्यों हो?
बढो, लोगों आगे बढो!

हमारी अर्थीभी जब उठे,
कहनेवाले ये न कहें,
ये हिंदू बिदा ले रहा,
इधर देखो, इधर देखो
ना कहें मुसलमाँ
जा रहा, कोई इधर देखो,
ज़रा इधर देखो,
लोगों, आगे बढो, आगे बढो !

हरसूँ एकही आवाज़ हो
एकही आवाज़मे कहो,
एक इन्सां जा रहा, देखो,
गीता पढो, या न पढो,
कोई फ़र्क नही, फ़ातेहा भी ,
पढो, या ना पढो,
लोगों, आगे बढो,

वंदे मातरम की आवाज़को
इसतरहा बुलंद करो
के मुर्दाभी सुन सके,
मय्यत मे सुकूँ पा सके!
बेहराभी सुन सके,
तुम इस तरहाँ गाओ
आगे बढो, लोगों आगे बढो!

कोई रहे ना रहे,
पर ये गीत अमर रहे,
भारत सलामत रहे
भारती सलामत रहें,
मेरी साँसें लेलो,
पर दुआ करो,
मेरी दुआ क़ुबूल हो,
इसलिए दुआ करो !
तुम ऐसा कुछ करो,
लोगों आगे बढो, आगे बढो!!

9 comments:

अविनाश वाचस्पति said...

अगस्‍त में मिली आजादी
या मिली है शिकस्‍त
इंसानियत हो रही है
सबके सामने ध्‍वस्‍त।

شہروز said...

बहुत खूब !!
इसी दर्द के सन्दर्भ से जुडा ..एक और संवाद..

आज़ादी की वर्षगांठ एक दर्द और गांठ का भी स्मरण कराती है ..आयें अवश्य पढ़ें
विभाजन की ६३ वीं बरसी पर आर्तनाद :कलश से यूँ गुज़रकर जब अज़ान हैं पुकारती
http://hamzabaan.blogspot.com/2010/08/blog-post_12.html

Udan Tashtari said...

शानदार और जबरदस्त!!

संजय भास्‍कर said...

ऐसी कवितायें रोज रोज पढने को नहीं मिलती...इतनी भावपूर्ण कवितायें लिखने के लिए आप को बधाई...शब्द शब्द दिल में उतर गयी.

vandana gupta said...

देश भक्ति की भावना से ओत-प्रोत रचना दिल को भिगो गयी।
वन्दे मातरम्।

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

कोई रहे ना रहे,
पर ये गीत अमर रहे,
भारत सलामत रहे
भारती सलामत रहें,
मेरी साँसें लेलो,
पर दुआ करो,
मेरी दुआ क़ुबूल हो,
इसलिए दुआ करो !
तुम ऐसा कुछ करो,
लोगों आगे बढो, आगे बढो!!

जश्ने-आज़ादी पर
आज़ाद चिन्तन पेश किया है आपने.

मनोज कुमार said...

बेहतरीन पोस्ट।

वन्दना अवस्थी दुबे said...

स्वाधीनता दिवस पर हार्दिक शुभकामानाएं.

Amit K Sagar said...

पूरी रचना में किस किस पंक्ति की तारीफ़ करुँ, इतना उम्दा लिखा है आपने इक़ बार फिर से. फिर भी ये दो लेने- यहाँ रखूँगा:
क्या मर गए सब इन्सां ?
बच गए सिर्फ़ हिंदू या मुसलमाँ ?
बेहद सरल शब्द और अंदाज़ में कहीं बहुत बड़ी बात! वाह!
--
आपका जीवन के प्रति और रचनाओं में समाज के प्रति जज्बा जब भी देखता हूँ- पाता हूँ कि मैं तो सो सा रहा हूँ, किसी गहरे आलस में घिरा हुआ! और क्या कहूं! शुक्रिया.