लिओ जी पर इस ब्लॉग का भार सौंप मै निश्चिन्त हूँ ....पर कभी कभी बड़ा अपराधबोध होता है...एक अदना-सी रचना पोस्ट कर रही हूँ...
हौसले बुलंद होते हैं,
लोग जब जवान होते हैं,
शमा बुझही जाती है,
नेह जब तमाम होते हैं,
क्यों उम्र दराज़ी की दुआ देते हैं?
इन्सां जीते जी परेशान होते हैं..
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12 comments:
यों कहें की शमा बुझा दी जाती है. शमा को तो जलते ही रहना चाहिए.
शमा जी,
सबसे पहले सुन्दर और गज़ब के कलाम के लिये
मुबारकबाद!
मेरी आप से गुजारिश है,कि आप ’कविता’ को इस तरह नज़रअन्दाज़ भी न करें। मेरा इस ब्लोग पर लिखना Incidental है! आपको अपने चमन के पौधों कों सीचंना ही होगा!
अपना कहा एक शेर याद आ गया आपके कलाम को पढकर!
"तेज़ हवाएँ भी हैं सर्द ,और अंधेरा भी घना,
शमा चाहे के नही उसे हर हाल में जलना होगा".
शमा कविता पर भी रोशन रहे ...
शुभकामनायें ...!
सुन्दर छोटी कविता !
sundar rachanaa hai badhaai|
शमा साहिबा...कलाम अच्छा है...
बस...
कुछ मायूसी का अहसास लगा.
शमाजी,
बहुत ही अच्छे भाव हैँ परन्तु मायूसी और उदासी जो आपके शब्दोँ से झलकती हैँ वो नाजुक दिल को दहला देती हैँ। लेखनी की शमा तो उम्रदराज होने पर अपनी रौशनी से अनेकोँ को राह दिखलाती हैँ। आप क्योँ निराश होती हैँ!?!
adbhut rachna..bahut khoob!
http://liberalflorence.blogspot.com/
bahut khoob!
http://liberalflorence.blogspot.com/
bahut sundar rachana hai aapkii
बेहद ही खूबसूरत रचना..
shama ji
chand lafjo me hi aapne zindagi ka saar de diya hai .. meri aapse iltza hai ki aap khoob likho aur behtar to aap likhti hi hai ..
badhayi kabool kare.
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