Thursday, April 9, 2009

कौन डगर,ये कैसा सफर?

भयभीत कुम्हलाये मनको क्या पता था?
ये डगर क्या थी, कौनसा रास्ता था?
मै किस मंजिल की ओर चली थी?
ये कौन शहर ,किस दिशा सफ़र चला ?
मेरे पीका घर था, या बंदीशाला?
मेरा इंतज़ार कौन कर रहा था?
आगे सपने थे या इक संसार पीड़ा का?
शर्मीली दुल्हन थी, पलकोंमे डर था,
ना आँसू सकती थी छलका,
खुलके हँसना भी मना था !
सफर आगे, आगे चला था,
मन बचपनके घरमे रुका पड़ा था,
वो नन्हीं, नन्हीं पग डंडियाँ,
मुझे थामने दौड़ते मेरे दादा,
नही भूल पा रही थी,
वो बाबुलकी, सखियाँ, वो गलियाँ,
सफर आगे, आगे चला था,
मन पीछे, पीछे भाग रहा था,
अनजान डर जिसे घेर रहा था...
इक भयभीत मन, भरमा रहा था,
पीका नगर करीब आ रहा था,
पीका नगर बस, आनेवाला था....

2 comments:

'sammu' said...

older poem part of 'duvidha' ??

'sammu' said...

Yes, part of that series..