दर्द कहाँ,कब बाँटा किसीने? किसने दामन से काँटे चुने? किसे फ़ुरसत के,रुक जाये, दो लम्हें,एक दास्ताँ सुन जाये? अभी बयानी शुरू हुई नही, देखो! वो उठे और चल दिए!
दर्द कहाँ,कब बाँटा किसी ने? किसने दामन से काँटे चुने? खुद त सीमित रहने वाली दुनिया का हाल बयान करती रचना. एक शेर मुलाहिज़ा फ़रमायें- हर इक इंसान उलझा है यहां अपने मसायल में परेशां और भी होंगे किसे अब याद आता है...
shama ji , bahut der se aapki kavitaye padh raha hoon , pahle to deri ki maafi chahunga .. lekin der se aane par bhi , kaviato ko padhkar man prasaan ho gaya . ye kavita to muje bahut hi jyaada pasand aayi ..
9 comments:
खूबसूरत भावों से भरी सुन्दर और सार्थक कविता.
शब्द शिखर पर- "भूकम्प का पहला अनुभव"
खूबसूरत कृति ....."
सच है किसीकी दर्देबयानी कौन सुनता है? खुशकिस्मत होते हैं वो लोग जिनको दर्द बांटने वाला मिल जाये...बहुत खूब लिखा है
aaj kee aapaa dhaapee kaa sahee chitran
Sahi kaha aapne किसे फ़ुरसत के,रुक जाये,
दो लम्हें,एक दास्ताँ सुन जाये?
Yahi aaj ka sach hai.....
..
बहुत अच्छी प्रस्तुति। सादर अभिवादन।
दर्द कहाँ,कब बाँटा किसी ने?
किसने दामन से काँटे चुने?
खुद त सीमित रहने वाली दुनिया का हाल बयान करती रचना.
एक शेर मुलाहिज़ा फ़रमायें-
हर इक इंसान उलझा है यहां अपने मसायल में
परेशां और भी होंगे किसे अब याद आता है...
Vaah!
shama ji , bahut der se aapki kavitaye padh raha hoon , pahle to deri ki maafi chahunga .. lekin der se aane par bhi , kaviato ko padhkar man prasaan ho gaya . ye kavita to muje bahut hi jyaada pasand aayi ..
aabhar aapka
vijay
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