बहोत वक़्त बीत गया,
यहाँ किसीने दस्तक दिए,
दिलकी राहें सूनी पड़ीं हैं,
गलियारे अंधेरेमे हैं,
दरवाज़े हर सरायके
कबसे बंद हैं !!
राहें सूनी पडी हैं॥
पता नही चलता है
कब सूरज निकलता है,
कब रात गुज़रती है,
सुना है, सितारों भरी ,
होतीं हैं रातें भी
राहें सूनी पड़ीं..
चाँद भी घटता बढ़ता है,
शफ़्फ़ाक़ चाँदनी, रातों में,
कई आँगन निखारती है,
यहाँ दीपभी जला हो,
ऐसा महसूस होता नही....
दिलकी राहें सूनी पड़ीं...
उजाले उनकी यादोंके,
हुआ करते थे कभी,
अब तो सायाभी नही,
ज़माने गुज़रे, युग बीते,
इंतज़ार ख़त्म होगा नही...
दिलकी राहें सूनी पड़ीं....
यहाँ होगी रहगुज़र कोई,
राहें, रहेंगी सूनी,सूनी,
कौन समझाए उसे?
कौन कहेगा उसे?
वो किसीका सुनती नही.....
सूनी राहों को तकती रहती...
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7 comments:
BEHTREEN RACHNAA
geet yaad aa raha hai, aayega ayega, ayega ane wala. ..........sunder rachna.
पता नही चलता है....कब सूरज निकलता है,
कब रात गुज़रती है,
सुना है, सितारों भरी...होतीं हैं रातें भी..राहें सूनी पड़ीं..
वाह......इसीलिये तो....
आपके भावपूर्ण कलाम का हमेशा इंतज़ार रहता है
उजाले उनकी यादों के हुआ करते थे कभी ...
यादों के उजाले हमेशा साथ ही तो रहते हैं ....
चाहे आपकी कवितायेँ उदास होती हो मगर आपकी टिप्पणी ने बहुत हौसला दिया ...
आभार
चाँद भी घटता बढ़ता है,
शफ़्फ़ाक़ चाँदनी, रातों में,
कई आँगन निखारती है,
यहाँ दीपभी जला हो,
ऐसा महसूस होता नही....
दिलकी राहें सूनी पड़ीं...
वाह उम्दा लफ़्ज़, बेहतरीन बयां!
बहुत खूबसूरती से उकेरे हैं जज़्बात....सुन्दर नज़्म...बधाई
अच्छी अभिव्यक्ति !
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