Wednesday, March 24, 2010

धूप में चल दिए..

घनी छाँव रोकती रही ..
कड़ी धूप बुलाती रही ,
हम धूप में चल दिए ,
दरख्तोंके साये छोड़ दिए
रुकना मुमकिन न था ,
चलना पड़ ही गया ..
कौन ठहरा यहाँ ?
अपनी भी मजबूरी थी ..
इक गाँव बुलाता रहा,
एक सफ़र जारी रहा..

4 comments:

रश्मि प्रभा... said...

gaanw bulata raha aur hum ek pagdandi khyaalon kee banate rahe, chalte rahe....

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

इक गाँव बुलाता रहा,
एक सफ़र जारी रहा..
वाह.......बेहतरीन

Yogesh Verma Swapn said...

umda.

ktheLeo (कुश शर्मा) said...

Nice thoughts!