दूर रेह्केभी क्यों
इतने पास रहते हैं वो?
हम उनके कोई नही,
क्यों हमारे सबकुछ,
लगते रहेते हैं वो?
सर आँखोंपे चढाया,
अब क्यों अनजान,
हमसे बनतें हैं वो?
वो अदा थी या,
है ये अलग अंदाज़?
क्यों हमारी हर अदा,
नज़रंदाज़ करते हैं वो?
घर छोडा,शेहेर छोडा,
बेघर हुए, परदेस गए,
और क्या, क्या, करें,
वोही कहें,इतना क्यों,
पीछा करतें हैं वो?
खुली आँखोंसे नज़र
कभी आते नही वो!
मूंदतेही अपनी पलकें,
सामने आते हैं वो!
इस कदर क्यों सताते हैं वो?
कभी दिनमे ख्वाब दिखलाये,
अब क्योंकर कैसे,
नींदें भी हराम करते हैं वो?
जब हरेक शब हमारी ,
आँखोंमे गुज़रती हो,
वोही बताएँ हिकमत हमसे,
क्योंकर सपनों में आयेंगे वो?
सुना है, अपने ख्वाबों में,
हर शब मुस्कुरातें हैं वो,
कौन है,हमें बताओ तो,
उनके ख्वाबोंमे आती जो?
दूर रेह्केभी क्यों,
हरवक्त पास रहेते हैं वो?
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9 comments:
अच्छी कविता है...मन-भाई...
याद आते हैं जो ...
दूर रह कर भी पास ही रहते हैं हमेशा ....
ham to dar hi gaye the ki ab hamne kya kiya baba ?
subdar kavita...man bhaa gayi hai..
सुन्दर कविता है दी.
Honest Comment:
भाव सुन्दर और लाजवाब, पर माफ़ करें,एसा लगता है लफ़्ज़ों को चुनने में थोडी जल्दबाज़ी की गई है,रचनाकार के द्वारा!
pyaar men kabhi kabh aisa ho jata hai... achchi bhavpurn rachna.
बहुत अच्छी कविता।
जब हरेक शब हमारी..आँखों मे गुज़रती हो,
वोही बताएँ हिकमत हमसे..क्योंकर सपनों में आयेंगे वो...
अलग अंदाज में कही गई बात...बहुत खूब
मन के संशय को बखूबी लिखा है....दूर कहाँ पास हैं तभी तो लिखा ही ये सब :)
खूबसूरत नज़्म
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