Tuesday, March 9, 2010

उतारूँ कैसे?

"kavita' bog pe yah 200 vi post hai..

इक बोझ-सा है मनमे,
उतारूँ कैसे?
कहने को बहुत कुछ है,
कहूँ कैसे?
वो अल्फाज़ कहाँसे लाऊं,
जिन्हें तू सुने?
वो गीत सुनाऊं कैसे,
जो तूभी गाए?
लिखा था कभी रेत पे,
हवा ले गयी उसे...
गीत लिखे थे पानी पे,
बहा गयी लहरें उन्हें!
ना कागज़ है, ना क़लम है,
दास्ताँ सुनाऊँ कैसे?
ख़त्म नही होती राहें,
मै संभालूँ कैसे?
इक बोझ-सा है मनमे,
उतारूँ कैसे?

10 comments:

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

जिन्हें तू सुने....वो गीत सुनाऊं कैसे,

ना कागज़ है, ना क़लम है,....दास्ताँ सुनाऊँ कैसे

ये पंक्तियां बहुत अच्छी लगी.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

अक्सर ऐसे बोझ स्वयं ही उतरते हैं....जज़्बात बहुत खूबी से लिखे हैं..

मनोज कुमार said...

बेहतरीन। लाजवाब।

vandana gupta said...

bahut hi sunda rbhav.

200 vi post ki hardik badhayi.

पूनम श्रीवास्तव said...

aapane aapane bhavo ko bahut hi sundar shabdon me piroya hai..
poonam

दिगम्बर नासवा said...

अपना दुख अपना दर्द ... अपना गम खुद तक ही सीमित रखना चाहिए ....

ktheLeo (कुश शर्मा) said...
This comment has been removed by the author.
ktheLeo (कुश शर्मा) said...

जो कुछ भी मिला है उसे मुठ्ठी में छुपालो,
दौलते गम को सिक्के की तरह उछाला नही करते!

CSK said...

लिखा था कभी रेत पे,
हवा ले गयी उसे...
गीत लिखे थे पानी पे,
बहा गयी लहरें उन्हें!

Very Sweet Lines....

--champak.

Pradeep Kumar said...

कहने को बहुत कुछ है,
कहूँ कैसे?
वो अल्फाज़ कहाँसे लाऊं,
जिन्हें तू सुने?

sundar ! sachmuch aapke man bahut kuchh hai jo 200 th rachna post karke bhi yahi kahti hain ki kahne ko bahut kuchh hai ... likhti rahiye aapke paas kahne ko bahut kuchh hai to padhne waale bhi kam nahi hain.
wo kehte hain na
bade gaur se sun rahaa tha zamaana,
tumhi so gaye daastaan kahte kahte .