Thursday, March 4, 2010

"कविता" पर भी ,कल्कि और कलियुग!





बहुत सोचने पर भी समझ में तो नहीं आया
पर मानना पडा कि,

काल कालान्तर से कुछ भी नहीं बदला,
मानव के आचरण में,
और न हीं देव और देव नुमा प्राणिओं के,

पहले इन्द्र पाला करते थे,
मेनका,उर्वषि आदि,
विश्वामित्र आदि को भ्रष्ट करने के लिये,
और वो भी निज स्वार्थवश,

और अब स्वंयभू विश्वामित्र आदि,
पाल रहे हैं,
मेनका,उर्वषि..........आदि आदि
तथा कथित इन्द्र नुमा हस्तियों को वश मे करने के लिये.

बदला क्या?
सिर्फ़ काल,वेश, परिवेश,और परिस्थितियां,
मानव आचरण तब भी अब भी........
कपट,झूठं,लालच, आडम्बर,वासना, हिंसा और


नश्वर एंव नापाक होते हुये भी,


स्वंयभू "भगवान" बन जाने की कुत्सित अभिलाषा.......

5 comments:

कडुवासच said...

...प्रभावशाली अभिव्यक्ति !!!

vandana gupta said...

sahi kaha.

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

बदला क्या?
सिर्फ़ काल,वेश, परिवेश,और परिस्थितियां,
मानव आचरण तब भी अब भी........
कपट,झूठं,लालच, आडम्बर,वासना, हिंसा और
नश्वर एंव नापाक होते हुये भी,
स्वंभू "भगवान" बन जाने की कुत्सित अभिलाषा.......
एक गभीर मुद्दे पर लिखी गई कविता.

shama said...

बहुत सोचने पर भी समझ में तो नहीं आया
पर मानना पडा कि,

काल कालान्तर से कुछ भी नहीं बदला,
मानव के आचरण में,
और न हीं देव और देव नुमा प्राणिओं के,
Leoji aadmika wyavhaar kaal aur bhugol kee saree seema resha tod deta hai...yah nahi badlega...'sach'hai!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

har kaal men ye hota aaya hai...bahut achchhi tarah tulna ki hai..achchhi rachna