Wednesday, March 3, 2010

कट्घरेमे ईमान खड़ा...!

बोहोत सच बोल गयी,
बड़ी ना समझी की,
बस अब और नही,
अब झूठ बोलूँगी,
समझ आए वही,
सोचती हूँ ऐसाही!!
कट्घरेमे खडा किया,
सवालोंके घेरेमे, मेरे अपनों,
तुमने ईमान कर दिया !
तुम्हें क्या मिल गया ??
इल्तिजा है, रेहेम करो,
मेरी तफतीश करना,
खुदाके लिए, बंद करो!
भरे चौराहेपे मुझे,
शर्मसार तो ना करो!!
शर्मसार तो ना करो!

आज सरेआम गुनाह
सारे, कुबूल करती हूँ,
की या जो नही की
खुदको ख़तावार कहती हूँ,
हर ख़ता पे अपनीही,
मुहर लगा रही हूँ!!
इक़बालिया बयाँ देती हूँ,
सुनो, अये गवाहों, सुनो,
ख़ूब गौरसे सुनो !
जब बुलावा आए,
भरी अदालातमे, तुम्हें,
तुम बिना पलक झपके,
गवाही देना, ख़िलाफ़ मेरे!
गवाही देना, ख़िलाफ़ मेरे!

बाइज्ज़त बरी होनेवालों!
ज़िन्दगीका जश्न मनाओ,
तुम्हारे दामनमे हो,
ढेर सारी ख़ुशी वो,
जिसकी तुम्हें तमन्ना हो,
तुम्हारी हर तमन्ना पूरी हो,
तहे दिलसे दुआ देती हूँ,
जबतक साँस मे साँस है,
मेरी आखरी साँस तक,
मेरी दुआ क़ुबूल हो,
सिर्फ़ यही दुआ देती हूँ...!!
सिर्फ़ यही दुआ दे सकती हूँ!!

10 comments:

कडुवासच said...

तुम बिना पलक झपके,
गवाही देना, ख़िलाफ़ मेरे!
गवाही देना, ख़िलाफ़ मेरे!
....प्रभावशाली रचना !!!

Yogesh Verma Swapn said...

sunder abhivyakti.

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

मोहतरमा शमा साहिबा, आदाब
खूबसूरत रचना.

वन्दना अवस्थी दुबे said...

तकली देने वाले को भी दुआएं...क्या बात है!!बहुत सुन्दर रचना.

वाणी गीत said...

बाइज्जत बरी होने वालों को भी दुआएं ...
जो तोको काँटा बोये तही बोये तू फूल ...ये ऐसा युग तो नहीं ..मगर आप कहती हैं तो मान लेते हैं ...

संजय भास्‍कर said...

खूबसूरत रचना.

दिगम्बर नासवा said...

ये मन मानता नही ... जो दर्द देता है उसके लिए भी दुआ निकलती है ...

ktheLeo (कुश शर्मा) said...

जो दिल दर्द समझेगा,वही कुव्वत रखेगा दुआ देने की!

"खुदकशी करने वालों को भी आओ माफ़ हम कर दे,
जीते रहने का कोई रस्ता न नज़र आया होगा."

vandana gupta said...

bahut sundar bhav sanjoye hain.

ABHIVYAKTI said...

bahot umdo likha hai ...
Ab sach nahi bolungi .... kehta hain na sach bolo lekin woh ek ehnga sauda hai