ये कविता उस महात्मा और उसकी और हमारी माँ को समर्पित है .....जवाब उन लोगों को है, जो आज होती/दिखती हर बुराई के लिए गांधी को ज़िम्मेदार ठहरातें हैं...ये तो हर शहीद पे इल्ज़ामे बेवफ़ाई है...चाहे, गांधी हो, भगत सिंग हो या करकरे, सालसकर, अशोक काम्टे ....Jange aazaadee
ना लूटो , अस्मत इसकी,
ये है धरती माँ मेरी,
मै संतान इसकी,
क्यों है ये रोती?
सोचा कभी?
ना लूटो...
मत कहो इसे गंदी,
पलकोंसे ना सही,
हाथों से बुहारा कभी?
थूकने वालों को इसपे,
ललकारा कभी?
ना लूटो...
बस रहे हैं यहाँ कपूत ही,
तुम यहाँ पैदा हुए नही?
जो बोया गया माँ के गर्भमे
फसल वही उगी...
नस्ल वही पैदा हुई,
ना लूटो...
दिखाओ करतब कोई,
खाओ सीने पे गोली,
जैसे सीनेपे इंसानी,
गोडसेने गांधीपे चलायी,
कीमत ईमानकी चुकवायी,...
ना लूटो...
कहलाया ऐसेही नही,
साबरमती का संत कोई,
चिता जब उसकी जली,
कायनात ऐसेही नही रोई,
लडो फिरसे जंगे आज़ादी,
ना लूटो...
ख़तावार और वो भी गांधी?
तुम काबिले मुंसिफी नही,
झाँको इस ओर सलाखों की
बंद हुआ जो पीछे इनके,
वो हर इंसां गुनाहगार नही,
ना लूटो...
ये बात इन्साफ को मंज़ूर नही,
दिखलाओ उम्मीदे रौशनी,
महात्मा जगतने कहा जिसे,
वैसा फिर हुआ कोई?
कोई नही, कोई नही !!
ना लूटो...
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6 comments:
दिखाओ करतब कोई,
खाओ सीने पे गोली,....
सच लिखा ... आसान नही है सीने पे गोली खाना ........ जो बापू को ग़लत कहते हैं पहले वो उनको जान तो लें .......
बहुत अच्छी रचना है आज के दिन ........
सुन्दर भावों से रची है ये रचना...सच है कि बस सब कमियां निकालने पर उतारू होते हैं.....इस रचना के लिए बधाई
कविता इतनी मार्मिक है कि सीधे दिल तक उतर आती है ।
साबरमती के इस संत को प्रणाम जिसने अपने सीने पर गोली खाई ....!!
बहुत सुन्दर ओजस्वी रचना.
ना लूटो , अस्मत इसकी,
ये है धरती माँ मेरी,
मै संतान इसकी,
क्यों है ये रोती?
सोचा कभी?
ना लूटो...bahut hi behtrin rachna
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