खिलनेवाली थी, नाज़ुक सी
डालीपे नन्हीसी कली...!
सोंचा डालीने,ये कल होगी
अधखिली,परसों फूल बनेगी..!
जब इसपे शबनम गिरेगी,
किरण मे सुनहरी सुबह की
ये कितनी प्यारी लगेगी!
नज़र लगी चमन के माली की,
सुबह से पहले चुन ली गयी..
खोके कोमल कलीको अपनी
सूख गयी वो हरी डाली....
( bhroon hatya ko maddenazar rakhte hue ye rachna likhee thee..)
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10 comments:
umda rachna.
बेहद ही करुण अभिव्यक्ति...
सच है, ये अजन्मी बेटियां कोमल कलियां ही तो होतीं हैं, जिन्हें खिलने से पहले ही तोड लिया जाता है, या तोडने की कोशिश की जाती है.
बेहद ही भावपूर्ण रचना....
अच्छे भाव हैं कविता के...
मगर यही तो विंडबना है कि कलियों को खोकर भी हरी डालियाँ सूख नहीं जातीं सिर्फ गमगीन होती हैं।
सूख जातीं तो माली कलियाँ चुनने की हिमाकत न करता।
कविता जी,
'नज़र लगी चमन के माली की,
सुबह से पहले चुन ली गयी..
खोके कोमल कलीको अपनी
सूख गयी वो हरी डाली'
कई दुख बयान कर दिये आपने
भ्रुण हत्या
बताना शायद ज़रूरी भी नहीं था..
पंक्ति अपना भाव स्पष्ट कर रही है..
बधाई
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
Wah! Sunder bhavpurn rachna hai!
bahut hi gahan aur bhavmayi abhivyakti.
सुंदर रचना .......बेहद भाव पूर्ण अभिव्यक्ति
बहुत दिनों बाद आपको पढ़ा अच्छा लगा नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें
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