मोहब्बतों की कीमतें चुकाते,
मैने देखे है,
तमाम जिस्म और मन,
अब नही जाता मैं कभी
अरमानो की कब्रगाह की तरफ़।
दर्द बह सकता नहीं,
दरिया की तरह,
जाके जम जाता है,
लहू की मांनिद,
थोडी देर में!
अश्क से गर कोई
बना पाता नमक,
ज़िन्दगी खुशहाल,
कब की हो गई होती।
रिश्तो के खिलौने,
सिर्फ़ बहला सकते है,
दुखी मन को,
ज़िन्दगी गुजारने को,
पैसे चाहिये!!!!!!
For original thought please also visit www.sachmein.blogspot.com "सच में"
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7 comments:
रिश्तो के खिलौने,
सिर्फ़ बहला सकते है,
दुखी मन को,
ज़िन्दगी गुजारने को,
पैसे चाहिये!!!!!!
काव्य में ऐसी सच्ची बात कह पाना
सच मुच बहुत मुश्किल काम है
आपकी कविता यथार्थ को छू पाने में
सक्षम बन पडी है
रिश्तो के खिलौने,
सिर्फ़ बहला सकते है,
दुखी मन को,
ज़िन्दगी गुजारने को,
पैसे चाहिये!!!!!!
Kaisa kadva sach hai!
Bete ka byah honewala hai.Usee me bahut wyast ho gayi hun.
Aap aur aapke pariwaar ko naye saalkee dheron mubarakbaad!
आने वाली खुशियों से भरी घटनाओं से शुरु होने वाले नववर्ष की बहुत बहुत शुभकामनायें!
नया साल बहुत बहुत मुबारक
बहुत खूबसूरत क्षणिकाएं
रिश्तो के खिलौने,
सिर्फ़ बहला सकते है,
दुखी मन को,
ज़िन्दगी गुजारने को,
पैसे चाहिये...
इस दौर का बहुत बड़ा सच बयान किया है आपने...
नए साल की मुबारकबाद.
रिश्तो के खिलौने,
सिर्फ़ बहला सकते है,
दुखी मन को,
ज़िन्दगी गुजारने को,
पैसे चाहिये!!!!!!
कडुवा सच कहा है आपने ... .
आपको और आपके समस्त परिवार को नव वर्ष मंगलमय हो ...
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