जिस ने सुख दुख देखा हो।
माटी मे जो खेला हो,
बुरा भला भी झेला हो।
सिर्फ़ गुलाब न हो,छाँटें
झोली में हो कुछ काँटे।
अनुभव की वो बात करे,
कोरा ज्ञान नहीं बाँटे।
मेले बीच अकेला हो,
ज्ञानी होकर चेला हो।
हर पल जिसने जीया हो,
अमिय,हलाहल पीया हो।
पौधा एक लगाया हो,
अतिथि देख हर्षाया हो।
डाली कोई न काटी हो,
मुस्काने हीं बाँटी हो।
सच से जो न मुकरा हो,
भरी तिजोरी फ़ुकरा हो।
मेहनत से ही कमाता हो,
खुद पे न इतराता हो।
अधिक नहीं वो खाता हो
दुर्बल को न सताता हो ।
थोडी दारु पीता हो,
पर इसी लिये न जीता हो।
अपने मान पे मरता हो,
इज़्ज़त सबकी करता हो।
ईश्वर का अनुरागी हो,
सब धर्मों से बागी हो।
हर स्त्री का मान करें
तुलसी उवाच मन में न धरे।
(डोल,गंवार........)
भाई को पहचाने जो,
दे न उसको ताने जो।
पैसे पे न मरता हो,
बातें सच्ची करता हो।
भला बुरा पहचाने जो,
मन ही की न माने जो।
कभी नही शर्माता हो,
लालच से घबराता हो।
ऐसा एक मनुज ढूँडो,
अग्रज या अनुज ढूँडो।
खुद पर ज़रा नज़र डालो,
आस पास देखो भालो।
ऐसा गर इंसान मिले,
मानो तुम भगवान मिलें!
उसको दोस्त बना लेना,
मीत समझ अपना लेना।
जीवन में सुख पाओगे,
कभी नहीं पछताओगे।
8 comments:
सार्थक सन्देश देती अच्छी रचना ..
Kya rachana hai! Harek pankti khoobsoorteese nikharee huee!Alfaaz mil nahee rahe kuchh aur kahne ke liye!
bahut badhiyaa
बहुत बढ़िया रचना है बधाई।
बहुत सुन्दर संदेश देती रचना मगर आज ऐसा कहाँ मिलता है।
सार्थक सन्देश ....!
इतनी खूबियों वाला इंसान तो मिलना मुश्किल है...
वो एक शेर है न-
अल्लाह मैं इंसां हूं फ़रिश्ता तो नहीं हूं
इंसां न करेगा तो ख़ता कौन करेगा?
aaj ka insaan bahar se kuchh aur andar se kuchh hai.insaan pahchanna hi to sabse mushkil kaam hai ji
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