लडकियाँ कितनी ,
सहजता से,
बेटी से नानी बन जातीं है!
लडकियाँ आखिर,
लडकियाँ होती हैं!
शिव में ’इ’ होती है,
लडकियाँ,
वो न होतीं तो,
’शिव’ शव होते!
’जीवन’ में ’ई’,
होतीं हैं लडकियाँ
वो न होतीं तो,
वन होता जीव-’न’ न होता!
या ’जीव’ होता जीव-न, न होता!
और ’आदमी’ में भी,
’ई’ होतीं हैं,यही लडकियाँ!
पर आदमी! आदमी ही होता है!
और आदमी लडता रह जाता है,
अपने इंसान और हैवानियत के,
मसलों से!
आखिर तक!
फ़िर भी कहता है,
आदमी!
क्यों होती है?
ये ’लडकियाँ’!
हालाकि,
न हों उसके जीवन में,
तो रोता है!
ये आदमी!
है न कितना अजीब ये,
आदमी!
5 comments:
बहुत ही भावपूर्ण और संवेदनशील रचना। बधाई।
शिव में ’इ’ होती है,
लडकियाँ,
वो न होतीं तो,
’शिव’ शव होते!
Kya kamal ka khayal hai!
Aapkee badaulat ye blog jeevit hai!
बहुत ही भावपूर्ण रचना। बधाई।
शब्दों के भावार्थ बड़ी ही सूक्ष्मता से परिभाषित करते हुए आपने कविता को गूंथा है !
बधाई !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
बहुत खूब ... सच है लड़कियां हर रूप में जरूरी हैं आदमी के लिए ...
Post a Comment