Monday, September 6, 2010

वो कसक भी नही....

ऐसा नही कि तुम्हें हम से मुहब्बत नही ,
ये भी सच है कि, दिल में तुम्हारे, हमारे लिए,
पहली-सी अहमियत नही,वो कसक भी नही।

हज़ार वादे किये कि मिलेंगे वहीँ कहीँ,
ना मिलने की कोई वजह भी कही नही,
हमने इंतज़ार किया इसकी परवाह नही?

किसी दोराहे पे आप खड़े तो नही?
मोड़ लेना चाहते हो,कहते क्यों नही?
मेरी राह से तुम्हारी रहगुज़र मुमकिन नही?

6 comments:

मनोज कुमार said...

बहुत अच्छे भाव!

गीली मिट्टी पर पैरों के निशान!!, “मनोज” पर, ... देखिए ...ना!

Unknown said...

बहुत उम्दा...

वाह !

Unknown said...

बहुत उम्दा...

वाह !

ktheLeo (कुश शर्मा) said...

Nice one!

vandana gupta said...

बहुत सुन्दर भाव्।

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

किसी दोराहे पे आप खड़े तो नही?
मोड़ लेना चाहते हो,कहते क्यों नही?
मेरी राह से तुम्हारी रहगुज़र मुमकिन नही?
वाह...
शमा साहिबा...
रिश्तों में आने वाली दरार के हालात को...
बहुत खूबसूरत अंदाज़ में बयान किया है आपने...
एक शेर याद आ रहा है, शायद आपको पसंद आए...
तर्के-तआल्लुकात का अंदाज़ देखिए
वो भी सुना है उसने जो मैंने नहीं कहा.