ऐसा नही कि तुम्हें हम से मुहब्बत नही ,
ये भी सच है कि, दिल में तुम्हारे, हमारे लिए,
पहली-सी अहमियत नही,वो कसक भी नही।
हज़ार वादे किये कि मिलेंगे वहीँ कहीँ,
ना मिलने की कोई वजह भी कही नही,
हमने इंतज़ार किया इसकी परवाह नही?
किसी दोराहे पे आप खड़े तो नही?
मोड़ लेना चाहते हो,कहते क्यों नही?
मेरी राह से तुम्हारी रहगुज़र मुमकिन नही?
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6 comments:
बहुत अच्छे भाव!
गीली मिट्टी पर पैरों के निशान!!, “मनोज” पर, ... देखिए ...ना!
बहुत उम्दा...
वाह !
बहुत उम्दा...
वाह !
Nice one!
बहुत सुन्दर भाव्।
किसी दोराहे पे आप खड़े तो नही?
मोड़ लेना चाहते हो,कहते क्यों नही?
मेरी राह से तुम्हारी रहगुज़र मुमकिन नही?
वाह...
शमा साहिबा...
रिश्तों में आने वाली दरार के हालात को...
बहुत खूबसूरत अंदाज़ में बयान किया है आपने...
एक शेर याद आ रहा है, शायद आपको पसंद आए...
तर्के-तआल्लुकात का अंदाज़ देखिए
वो भी सुना है उसने जो मैंने नहीं कहा.
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