हर क़हत में हम सैलाब ले आये,आँसूं सूख गए, क़हत बरक़रार रहे..एहसास की यह अभिव्यक्ति ...बहुत खूब
कहनेको तो धरती निर्जला है,ज़रा दिलकी सरज़मीं देखो, कैसी है?दर्द के हजारों बीज बोये हुए हैं,पौधे पनप रहे हैं,फसल माशाल्लाह है ..दर्द के हज़ारों पेड़ उग आए हैं ... दर्द की नदी बह रही है ... बहुत लाजवाब ...बहुत खूब लिखा है ....
जज़्बातो की ज़मीन पे दर्द की बीज, फ़सल गमों की लहलहायेगी!सुन्दर ख्याल बना है!वाह
दर्द के हजारों बीज बोये हुए हैं,पौधे पनप रहे हैं,फसल माशाल्लाह है!वाह..घज़ब कर दिया इन चंद पंक्तियों में ही.....बहुत खूब
दर्द के हजारों बीज बोये हुए हैं,पौधे पनप रहे हैं,फसल माशाल्लाह है! .... bahut sundar, behatreen bhaav, badhaai !!!
कहने को तो धरती निर्जला है,ज़रा दिल की सरज़मीं देखो, कैसी है?वाह...बिल्कुल अलग ही अंदाज़ से कही गई है बात. मुबारकबाद कबूल फ़रमाएं
शमा जी...कहनेको तो धरती निर्जला है,ज़रा दिलकी सरज़मीं देखो, कैसी है?प्रश्न मार्मिक है और जवाब देने की जुर्रत नहीं...बहुत ही कम शब्दों में क्या खूब कह दिया...
बहुत खूब कहा आपने
शमा जी, ब्लॉग पर आने के लिए शुक्रिया ...आपकी यह रचना मुझे अच्छी लगी ... खास कर ये पंक्तियाँ -हर क़हत में हम सैलाब ले आये,आँसूं सूख गए, क़हत बरक़रार रहे..
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9 comments:
हर क़हत में हम सैलाब ले आये,
आँसूं सूख गए, क़हत बरक़रार रहे..
एहसास की यह अभिव्यक्ति ...बहुत खूब
कहनेको तो धरती निर्जला है,
ज़रा दिलकी सरज़मीं देखो, कैसी है?
दर्द के हजारों बीज बोये हुए हैं,
पौधे पनप रहे हैं,फसल माशाल्लाह है ..
दर्द के हज़ारों पेड़ उग आए हैं ... दर्द की नदी बह रही है ... बहुत लाजवाब ...बहुत खूब लिखा है ....
जज़्बातो की ज़मीन पे दर्द की बीज, फ़सल गमों की लहलहायेगी!सुन्दर ख्याल बना है!वाह
दर्द के हजारों बीज बोये हुए हैं,
पौधे पनप रहे हैं,फसल माशाल्लाह है!
वाह..घज़ब कर दिया इन चंद पंक्तियों में ही.....बहुत खूब
दर्द के हजारों बीज बोये हुए हैं,
पौधे पनप रहे हैं,फसल माशाल्लाह है!
.... bahut sundar, behatreen bhaav, badhaai !!!
कहने को तो धरती निर्जला है,
ज़रा दिल की सरज़मीं देखो, कैसी है?
वाह...बिल्कुल अलग ही अंदाज़ से कही गई है बात. मुबारकबाद कबूल फ़रमाएं
शमा जी...
कहनेको तो धरती निर्जला है,
ज़रा दिलकी सरज़मीं देखो, कैसी है?
प्रश्न मार्मिक है और जवाब देने की जुर्रत नहीं...
बहुत ही कम शब्दों में क्या खूब कह दिया...
बहुत खूब कहा आपने
शमा जी, ब्लॉग पर आने के लिए शुक्रिया ...
आपकी यह रचना मुझे अच्छी लगी ... खास कर ये पंक्तियाँ -
हर क़हत में हम सैलाब ले आये,
आँसूं सूख गए, क़हत बरक़रार रहे..
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