खिलनेवाली थी, नाज़ुक सी
डालीपे नन्हीसी कली...!
सोंचा डालीने,ये कल होगी
अधखिली,परसों फूल बनेगी..!
जब इसपे शबनम गिरेगी,
किरण मे सुनहरी सुबह की
ये कितनी प्यारी लगेगी!
नज़र लगी चमन के माली की,
सुबह से पहले चुन ली गयी..
खोके कोमल कलीको अपनी
सूख गयी वो हरी डाली....
( bhroon hatya ko maddenazar rakhte hue ye rachna likhee thee..)
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8 comments:
विषय को कलात्मक ढंग से प्रस्तुत करती है ।
बहुत सुंदरता से इतनी गहरी बात कही गई जो मन को छू गई
सोंचा डालीने,ये कल होगी
अधखिली,परसों फूल बनेगी..!
जब इसपे शबनम गिरेगी,
किरण मे सुनहरी सुबह की
ये कितनी प्यारी लगेगी!
सच है मां के कितने सपने पल भर में तोड़ दिए जाते हैं
अच्छी प्रस्तुति...
पीडा का दर्शन कराती रचना।
...मार्मिक अभिव्यक्ति!!!
दर्द भरी रचना ..... काली अक्सर खिलने से पहले ही बर्बाद कर दी जाती है ...
परिस्थितियों के कहर से कहाँ बच पाती है ममता.
मार्मिक रचना.
बहुत मार्मिक प्रस्तुति है ... सच में मुझे इन लोगों (जो लोग भ्रूण हत्या करते हैं करवाते हैं) की मानसिकता समझ में नहीं आती है ... क्या ये लोग इंसान नहीं है ... मई जब अपनी बेटी को देखता हूँ ... तो सोचता हूँ की कोई कैसे ऐसी सोच अपने दिमाग में ला सकता है ... अपनी बेटी की एक मुस्कान से दिनभर का थकान दूर हो जाती है ... सारे दुःख मिट जाते हैं ...
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