जब मै आता हूं कहने पे,तो सब छोड के कह देता हूं,
सच न कहने की कसम है पर तोड के कह देता हूं,
दिल है पत्थर का पिघल जाये मेरी बात से तो ठीक,
मै भी पक्का हूं इबादत का,सनम तोड के कह देता हूं.
मै तो सच कहता हूं तारीफ़-ओ-खुशामत मेरी कौन करे,
सच अगर बात हो तो सारे भरम तोड के कह देता हूं.
भरोसा उठ गया है सारे मुन्सिफ़-ओ-वकीलो से,
मै सज़ायाफ़्ता हूं ये बात कलम तोड के कह देता हूं.
वो होगें और ’इल्म के सौदागर’ जो डरते है रुसवाई से,
मै ज़ूनूनी हूं ज़माने के चलन तोड के कह देता हूं.
8 comments:
wah bahut achhi rachna.
वो होगें और ’इल्म के सौदागर’ जो डरते है रुसवाई से,
मै ज़ूनूनी हूं ज़माने के चलन तोड के कह देता हूं...
इस जज्बे को सलाम ....!!
भरोसा उठ गया है सारे मुन्सिफ़-ओ-वकीलो से,
मै सज़ायाफ़्ता हूं ये बात कलम तोड के कह देता हूं.
बहुत खूब...जूनून पुरे शवाब पर है...खूबसूरत
वो होगें और ’इल्म के सौदागर’ जो डरते है रुसवाई से,
मै ज़ूनूनी हूं ज़माने के चलन तोड के कह देता हूं.
ग़ज़ब की खुद्दारी भरे शेर हैं .......... मज़ा आ गया पढ़ कर ... लाजवाब ...........
सच कहने का
हौसला देती रचना.
बधाई
वो होगें और ’इल्म के सौदागर’ जो डरते है रुसवाई से,
मै ज़ूनूनी हूं ज़माने के चलन तोड के कह देता हूं.
बहोत खूब ।
मै तो सच कहता हूं तारीफ़-ओ-खुशामत मेरी कौन करे,
सच अगर बात हो तो सारे भरम तोड के कह देता हूं.wafa ke andaj me kah gaye aap saari baate ,hame behad pasand aai rachna aapki .
अल्फ़ाज़ कलाम हो गये आप लोगो की तारीफ़ पाकर!शुक्रिया,तहे दिल से!
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