कितने' काश' लिए बैठे थे दिल में,
खामोश ज़ुबाँ, बिसूरते हुए मुँह में,
कब ,क्यो,किधर,कहाँ, कैसे,
इन सवालात घेरे में,
अपनी तो ज़िंदगानी घिरी,
अब, इधर, यहाँ यूँ,ऐसे,
जवाब तो अर्थी के बाद मिले,
क्या गज़ब एक कहानी बनी,
लिखी तो किसी की रोज़ी बनी,
ता-उम्र हम ने तो फ़ाक़े किए,
कफ़न ओढ़ा तो चांदी बनी...
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6 comments:
क्या बात कही है ... lAJAWAAB RACHNAHAI .. BAHUT SE PRASNON KE JAWAAB JETE JI NAHI MILTE ...
बहुत मार्मिक रचना ...
मोहतरमा शमा साहिबा, आदाब
कितने' काश' लिए बैठे थे दिल में.....
..........कब ,क्यो,किधर,कहाँ, कैसे,
इन सवालात घेरे में......अपनी तो ज़िंदगानी घिरी,
.............ता-उम्र हम ने तो फ़ाक़े किए,....कफ़न ओढ़ा तो चांदी बनी...
बेहद भावपूर्ण दिल को छू लेने वाली नज़्म है...
हृदयस्पर्शी रचना है दीदी.बहुत सुन्दर.
क्या गज़ब एक कहानी बनी,
लिखी तो किसी की रोज़ी बनी,
ता-उम्र हम ने तो फ़ाक़े किए,
कफ़न ओढ़ा तो चांदी बनी...
bahut khob, shaandaar abhivyakti.
bahut hi gahri baat kah di.
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