Thursday, February 25, 2010

काश...!

कितने' काश' लिए बैठे थे दिल में,
खामोश ज़ुबाँ, बिसूरते हुए मुँह में,
कब ,क्यो,किधर,कहाँ, कैसे,
इन सवालात घेरे में,
अपनी तो ज़िंदगानी घिरी,
अब, इधर, यहाँ यूँ,ऐसे,
जवाब तो अर्थी के बाद मिले,
क्या गज़ब एक कहानी बनी,
लिखी तो किसी की रोज़ी बनी,
ता-उम्र हम ने तो फ़ाक़े किए,
कफ़न ओढ़ा तो चांदी बनी...

6 comments:

दिगम्बर नासवा said...

क्या बात कही है ... lAJAWAAB RACHNAHAI .. BAHUT SE PRASNON KE JAWAAB JETE JI NAHI MILTE ...

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत मार्मिक रचना ...

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

मोहतरमा शमा साहिबा, आदाब

कितने' काश' लिए बैठे थे दिल में.....
..........कब ,क्यो,किधर,कहाँ, कैसे,
इन सवालात घेरे में......अपनी तो ज़िंदगानी घिरी,
.............ता-उम्र हम ने तो फ़ाक़े किए,....कफ़न ओढ़ा तो चांदी बनी...
बेहद भावपूर्ण दिल को छू लेने वाली नज़्म है...

वन्दना अवस्थी दुबे said...

हृदयस्पर्शी रचना है दीदी.बहुत सुन्दर.

Yogesh Verma Swapn said...

क्या गज़ब एक कहानी बनी,
लिखी तो किसी की रोज़ी बनी,
ता-उम्र हम ने तो फ़ाक़े किए,
कफ़न ओढ़ा तो चांदी बनी...

bahut khob, shaandaar abhivyakti.

vandana gupta said...

bahut hi gahri baat kah di.