Thursday, February 11, 2010

इंसान होने की सजा!


'कविता' के पाठको से भी  प्यार पाने की उम्मीद में 

मेरे तमाम गुनाह हैं,अब इन्साफ़ करे कौन.
कातिल भी मैं, मरहूम भी मुझे माफ़ करे कौन.

दिल में नहीं है खोट मेरे, नीयत भी साफ़ है,
कमज़ोरियों का मेरी, अब हिसाब करे कौन.

हर बार लड रहा हूं मै खुद अपने आपसे, 
जीतूंगा या मिट जाऊंगा, कयास करे कौन.      

मुदद्दत से जल रहा हूं मै गफ़लत की आग में,
मौला के सिवा, मेरी नज़र साफ़ करे कौन.

गर्दे सफ़र है रुख पे मेरे, रूह को थकान,
नफ़रत की हूं तस्वीर,प्यार बेहिसाब करे कौन.

10 comments:

Anonymous said...

वाह वाह - खुबसूरत और सार्थक
मेरे लिए सबसे खास:
दिल में नहीं है खोट मेरे, नीयत भी साफ़ है,
कमज़ोरियों का मेरी, अब हिसाब करे कौन.
आभार

Randhir Singh Suman said...

दिल में नहीं है खोट मेरे, नीयत भी साफ़ है.nice

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

खूबसूरत ग़ज़ल...

हर बार लड रहा हूं मै खुद अपने आपसे,
जीतूंगा या मिट जाऊंगा, कयास करे कौन.

जिंदगी में अक्सर यूँ ही लड़ना होता है....बहुत खूब

vandana gupta said...

ye to apni jung apne aap se hi hai to khud hi muljim aur khud hi munsif banna hi padega..........bahut hi sundar.

देवेन्द्र पाण्डेय said...

मुदद्दत से जल रहा हूं मै गफ़लत की आग में,
मौला के सिवा, मेरी नज़र साफ़ करे कौन.

..अच्छा शेर.

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

आदाब
मुदद्दत से जल रहा हूं मै गफ़लत की आग में,
मौला के सिवा, मेरी नज़र साफ़ करे कौन.
बहुत खूबसूरत शेर हुआ है, वाह वाह

Yogesh Verma Swapn said...

sabhi sher lajawaab.

दिगम्बर नासवा said...

मुदद्दत से जल रहा हूं मै गफ़लत की आग में,
मौला के सिवा, मेरी नज़र साफ़ करे कौन.

बहुत ही लाजवाब शेर ....

shama said...

Kaise likh lete hain aap itna khoobsoorat?

ktheLeo (कुश शर्मा) said...

पढने वालों की मोहब्बत है जो अल्फ़ाज़ो को कलाम बना देती है!पसन्द करने के लिये शुक्रिया!