Monday, February 8, 2010

परिंदे.....

उड़ गए परिंदे, है ख़ाली घोंसला,
जब भरती चोचों में दाना,
याद करे आज वो दिन मादा,
देखे ,क्षितिज को, जो दुभागा गया...

9 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

इसी का नाम जिंदगी है....बच्चे बड़े हो कर चले जाते हैं और रह जाता है खाली घर.....जज्बातों को खूबसूरत शब्द दिए हैं

विजय तिवारी " किसलय " said...

पर्यावरण के घटते स्तर को देख कर चिंता स्वाभाविक है. रचना छोटी है, लेकिन उद्देश्य पूर्ण है.
- विजय

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

शमा साहिबा, आदाब
उड़ गये परिंदे, है ख़ाली घोंसला...
...ये कैसा दर्द बयान कर डाला आपने..
कि कुछ कहने को अल्फ़ाज़ तलाश करने भी कामयाब नहीं हो पा रहा हूं.

वाणी गीत said...

उड़ना सीखने के बाद चिड़िया के बच्चे उड़ ही जाते हैं ...हम मनुष्य भी कुछ सीख ले उनसे ...क्यों बच्चों को बांध कर रखने की जिद करे ....वे जहाँ रहे ...खुश रहे और हम चिड़िया की तरह उनकी खुशी देख कर खुश रहे ..!

दिगम्बर नासवा said...

ये जीवन की रीत है ....... बड़े होने पर पंछी उड़ जाते हैं ...... अछा लगा आपका लिखना ...

vandana gupta said...

bahut hi gahan aur marmik.

Neeraj Kumar said...

छोटी सी अत्यंत प्रभावशाली रचना...आगमन के लिए शुक्रिया...

Yogesh Verma Swapn said...

umda.

ज्योति सिंह said...

koi samjhega kya raaze gulshan ,ye jeevan hai is jeevan ka ,yahi hai rang roop ,thode gam hai thodi khushiyaan ,yahi hai chhav dhoop .
bahut hi pyari rachna .