दूर कहीँ आहट हुई,
लगा ,गुज़रा कोई,
दिलकी राहों पे दस्तक हुई,
लगा गुज़रा कोई,
दिलने धीरेसे द्वार खोला,
ना राही न परिंदा!
कोई कहीँ नही था!
ये कौन गुज़रा था?
मुझे ये क्या हुआ?
ये महसूस हुआ?
इस सवाल का
जवाब कोई होगा?
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8 comments:
अहिस्ता-अहिस्ता चलते हुए रचना एक दम से प्रश्न हो जाती है? यही यथार्थ इसकी खूबी है! बहुत खूब!
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Till 25-09-09 लेखक / लेखिका के रूप में ज्वाइन [उल्टा तीर] - होने वाली एक क्रान्ति!
adbhut prastuti.............aisi aahtein aur aisi dastak.........aur use mehsoos karna ...........waah waah.
pls visit my new blog also:
http://ekprayas-vandana.blogspot.com
bahut hi sundar rachana......
हां होता है ऐसा भी कभी-कभी..किसी के होने का अहसास...सुन्दर कविता.
शमा जी,
उस सवाल का जवाब जरूर मिलेगा किसी दिन यह सोच कर ही किसी भी आहट या दस्तक को कोई दरकिनार नही करता।
एक अच्छी कविता।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
आपकी लेखनी में प्रशन हैं... बहुत कम शब्दों में बड़ी बात कहने की खूबी है आपने... अच्छा लिखा है
आहट ही हटना है
जवाब इसका घटना है
कुछ हुवा महसूस क्यों ?
इन सवालों का जबाब ?
दे सके इन्सान तो
इंसा नहीं रह जायेगा .
दिल के दरवाजे खुले,
कब कब कहाँ, कैसे खुले
कौन आया कौन गुजरा
कौन ठहरा क्या पता ?
इस लिए ही दिल भी दिल है
किस की आहट क्या पता ?
कौन ठहरा क्या पता ?
इस लिए ही दिल भी दिल है
किस की आहट क्या पता ?
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