२ अक्टूबर को गांधी जयंती आ रही है..ये कविता उस महात्मा और उसकी और हमारी माँ को समर्पित है .....जवाब उन लोगों को है, जो आज होती/दिखती हर बुराई के लिए गांधी को ज़िम्मेदार ठहरातें हैं...ये तो हर शहीद पे इल्ज़ामे बेवफ़ाई है...चाहे, गांधी हो, भगत सिंग हो या करकरे, सालसकर, अशोक काम्टे ....
ना लूटो , अस्मत इसकी,
ये है धरती माँ मेरी,
मै संतान इसकी,
क्यों है ये रोती?
सोचा कभी?
ना लूटो...
मत कहो इसे गंदी,
पलकोंसे ना सही,
हाथों से बुहारा कभी?
थूकने वालों को इसपे,
ललकारा कभी?
ना लूटो...
बस रहे हैं यहाँ कपूत ही,
तुम यहाँ पैदा हुए नही?
जो बोया गया माँ के गर्भमे
फसल वही उगी...
नस्ल वही पैदा हुई,
ना लूटो...
दिखाओ करतब कोई,
खाओ सीने पे गोली,
जैसे सीनेपे इंसानी,
गोडसेने गांधीपे चलायी,
कीमत ईमानकी चुकवायी,...
ना लूटो...
कहलाया ऐसेही नही,
साबरमती का संत कोई,
चिता जब उसकी जली,
कायनात ऐसेही नही रोई,
लडो फिरसे जंगे आज़ादी,
ना लूटो...
ख़तावार और वो भी गांधी?
तुम काबिले मुंसिफी नही,
झाँको इस ओर सलाखों की
बंद हुआ जो पीछे इनके,
वो हर इंसां गुनाहगार नही,
ना लूटो...
ये बात इन्साफ को मंज़ूर नही,
दिखलाओ उम्मीदे रौशनी,
महात्मा जगतने कहा जिसे,
वैसा फिर हुआ कोई?
कोई नही, कोई नही !!
ना लूटो...
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11 comments:
वाह बहुत ही खुब ........
bahut khoob, sunder rachna.
bahut hi utkrisht vichaaron ka samanvay hai......waah
बहुत सुन्दर रचना शमां दीदी । उनको नमन ।
bahoot khoob .. aaj ke sandarbh mein is rachna ka mahatv aur bhi badh jaata hai ..... kamaal ka likha hai ...
bahut josh hai isme...badhai
ये बात इन्साफ को मंज़ूर नही,
दिखलाओ उम्मीदे रौशनी,
महात्मा जगतने कहा जिसे,
वैसा फिर हुआ कोई?
कोई नही, कोई नही !!
ना लूटो.
bahut hi sahi kaha hai aapne...........
itna achcha khyaal kaise le aatin hain aap?
ख़तावार और वो भी गांधी?
तुम काबिले मुंसिफी नही,
झाँको इस ओर सलाखों की
बंद हुआ जो पीछे इनके,
वो हर इंसां गुनाहगार नही,
वाह! बहुत खूब कविता.
जंगे आजादी कैसी
भी
लड़े अब वो गांधी
कहीं नहीं मिलेगा।
अच्छी काव्य रचना ।
दे दी आजादी,हमें बिना खड़ग ढाल
साबर मती के सन्त तुझे सलाम
आपकी कलम में वो बात है जो सोचने पर मजबूर कर दे | बहुत अच्छा लिखा है |
Rishi
http://manyyabsurdthoughts.blogspot.com/
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