खुशनुमा माहौल में भी गम होता है,
हर चांदनी रात सुहानी नहीं होती।
भूख, इश्क से भी बडा मसला है,
हर एक घटना कहानी नहीं होती।
दर्द की कुछ तो वजह रही होगी,
हर तक़लीफ़ बेमानी नही होती।
श्याम को ढूंढ के थक गई होगी,
हर प्रेम की मारी दिवानी नही होती।
शाम होते ही रात का अहसास,
विदाई सूरज की सुहानी नहीं होती।
हर इंसान गर इसे समझ लेता,
ज़िन्दगी पानी-पानी नहीं होती।
11 comments:
भूख, इश्क से भी बडा मसला है,
हर एक घटना कहानी नहीं होती
बहुत सुन्दर.
अच्छी कविता है लेकिन मुझे लगता है लगभग हरेक दूसरी पँक्ति पहली पँक्ति के कथन को पूर्ण करती है लेकिन उसका समर्थन नहीँ करती।
"दर्द की कुछ तो वजह रही होगी,
हर तक़लीफ़ बेमानी नही होती।"
बहुत खूब जी।
हर प्रेम की मारी दीवानी नहीं होती ...
क्या बात है ...!
बहुत कुछ अनकहा कह दिया है , अच्छा लगा . मीरा को शायद मारी लिख बैठे हैं आप ,एडिट कर लें .
ऐसे लाजवाब शायरी हो तो 'मजाल',
वजह-ए-दाद बतानी नहीं होती ...
बहुत खूब... लिखते रहिये ...
श्याम को ढूंढ के थक गई होगी,
हर प्रेम की मारी दिवानी नही होती।
कुछ नए कुछ पुराने से अहसास -भाव में भी शिल्प में भी
दर्द की कुछ तो वजह रही होगी,
हर तक़लीफ़ बेमानी नही होती।
बहुत सुन्दर गज़ल
भूख, इश्क से भी बडा मसला है,
हर एक घटना कहानी नहीं होती।
शायद ये सब से बड़ा मसला है .... भूख के पीछे सब कुछ गौण है ....
दर्द की कुछ तो वजह रही होगी,
हर तक़लीफ़ बेमानी नही होती
सच है जिसको दर्द होता है वही समझ पाता है ... हर तकलीफ़ के पीछे वजह होती है ....
बहुत गहराई में जा कर लिखा हैं .....
Do teen dinon se network down tha isliye comments post nahi ho saki!
Rachana behad achhee hai,kahne kee zaroorat hee nahi..haath kangan ko aarasi kya?
@ शारदा जी,
सुझाव का शुक्रिया, असल में मैने ’प्रेम की मारी’ ही लिखा था,
आपका इसको ’मीरा’ पढना भी इसे एक नया आयाम देता है!
आभार!
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