लहू अब अश्क में बहने लगा है,
नफ़रतें ख़्वाब में आने लगीं हैं,
मरुस्थल से जिसे घर में जगह दी
नागफ़नी फ़ूलों को खाने लगीं हैं,
हमारी फ़ितरत का ही असर है,
चांदनी भी तन को जलाने लगी है
चलो अब चांद तारो को भी बिगाडें
रितुयें धरती से मूंह चुराने लगीं है.
बात कडवी है तो कडवी ही लगेगी,
सच्ची बातें किसको सुहानी लगीं है.
7 comments:
"बात कडवी है तो कडवी ही लगेगी,
सच्ची बातें किसको सुहानी लगीं है."
सुन्दर पँक्तियाँ.........."
बात कडवी है तो कडवी ही लगेगी,
सच्ची बातें किसको सुहानी लगीं है.
...bahut sundar, behatareen abhivyakti!!!!
ऋतुएं बदलने लगी हैं ...अब चाँद तारों पर भी ..
बदलते पर्यावरण के साथ इंसान की फितरत को खूब बयान कर रही हैं ये पंक्तियाँ ...
बात सच्ची कडवी ही होती है कब किसी को अच्छी लगी है ...!!
आज की कड़वी सच्चाई को बताती अच्छी ग़ज़ल
कथन उपयुक्त ।
बात कडवी है तो कडवी ही लगेगी,
सच्ची बातें किसको सुहानी लगीं है.
waah.........bahut hi sundar panktiyan aur umda prastuti.
Leoji, hameshaki tarah, bahuthi khoobsurat rachana!
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