Thursday, April 8, 2010

कडवी कडवी !!! "Kavita" par bhi!

लहू अब अश्क में बहने लगा है,
नफ़रतें ख़्वाब  में आने लगीं हैं,

मरुस्थल से जिसे  घर में जगह दी
नागफ़नी फ़ूलों को खाने लगीं हैं, 

हमारी फ़ितरत का ही असर है,
चांदनी भी तन को जलाने लगी है

चलो अब चांद तारो को भी बिगाडें  
रितुयें धरती से मूंह चुराने लगीं है.

बात कडवी है तो कडवी ही लगेगी,
सच्ची बातें किसको सुहानी लगीं है. 

7 comments:

Amitraghat said...

"बात कडवी है तो कडवी ही लगेगी,
सच्ची बातें किसको सुहानी लगीं है."
सुन्दर पँक्तियाँ.........."

कडुवासच said...

बात कडवी है तो कडवी ही लगेगी,
सच्ची बातें किसको सुहानी लगीं है.
...bahut sundar, behatareen abhivyakti!!!!

वाणी गीत said...

ऋतुएं बदलने लगी हैं ...अब चाँद तारों पर भी ..
बदलते पर्यावरण के साथ इंसान की फितरत को खूब बयान कर रही हैं ये पंक्तियाँ ...
बात सच्ची कडवी ही होती है कब किसी को अच्छी लगी है ...!!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आज की कड़वी सच्चाई को बताती अच्छी ग़ज़ल

अरुणेश मिश्र said...

कथन उपयुक्त ।

vandana gupta said...

बात कडवी है तो कडवी ही लगेगी,
सच्ची बातें किसको सुहानी लगीं है.

waah.........bahut hi sundar panktiyan aur umda prastuti.

shama said...

Leoji, hameshaki tarah, bahuthi khoobsurat rachana!