Thursday, July 12, 2012

संवेदनहीन




अतृप्त आत्मा ,












भूखे शरीर और उसकी ज़रूरतें तमाम,


मन बेकाबू,






और उसकी गति बे-लगाम,


अधूरा सत्य,


धुन्धले मंज़र सुबुह शाम,



क्या पता? कब और कैसे आये मुकम्मल सुकूं,


और रूह को आराम!



12 comments:

दिगम्बर नासवा said...

भूखे शरीर को आराम आए तभी तो अतृप्त आत्मा को भी आराम आए ...

ANULATA RAJ NAIR said...

सुन्दर.....

बस फॉर्मेट थोडा गडबड हो गया है...

सादर
अनु

Asha Joglekar said...

सुंदर, अति सुंदर ।

mridula pradhan said...

achchi lagi.....

Kailash Sharma said...

सुन्दर....

shama said...

Bahut dinon baad ye blog khola aur aapkee sundar rachana dikhee!

Vinay said...

Heart touching...

Tech Prévue · तकनीक दृष्टा

Vinay said...

नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ... आशा है नया वर्ष न्याय वर्ष नव युग के रूप में जाना जायेगा।

ब्लॉग: गुलाबी कोंपलें - जाते रहना...

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...



✿♥❀♥❁•*¨✿❀❁•*¨✫♥
♥सादर वंदे मातरम् !♥
♥✫¨*•❁❀✿¨*•❁♥❀♥✿


सुंदर सृजन !
...लेकिन पोस्ट बदले हुए बहुत समय हो गया है आदरणीय ktheLeo जी
आशा है सपरिवार स्वस्थ सानंद हैं
आपकी प्रतीक्षा है सारे हिंदी ब्लॉगजगत को …
:)



हार्दिक मंगलकामनाएं …
लोहड़ी एवं मकर संक्रांति के शुभ अवसर पर !

राजेन्द्र स्वर्णकार
✿◥◤✿✿◥◤✿◥◤✿✿◥◤✿◥◤✿✿◥◤✿◥◤✿✿◥◤✿

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