बने रहनुमा हमारे,
कई राज़ डरावने,
आ गए सामने, बन नज़ारे,
बंद चश्म खोल गए,
सचके साक्षात्कार हो गए,
हम उनके शुक्रगुजार बन गए...
बेहतर हैं यही साये,
जिसमे हम हो अकेले,
ना रहें ग़लत मुगालते,
मेहेरबानी, ये करम
बड़ी शिद्दतसे वही कर गए,
चाहे अनजानेमे किए,
हम आगाह तो हो गए....
जो नही थे माँगे हमने,
दिए खुदही उन्होंने वादे,
वादा फरोशी हुई उन्हीसे,
बर्बादीके जश्न खूब मने,
ज़ोर शोरसे हमारे आंगनमे...
इल्ज़ाम सहे हमीने...
ऐसेही नसीब थे हमारे....
9 comments:
ओह ! बेहद दर्द ही दर्द भरा है।
अन्धेरों की रहनुमाई से अच्छा है कि भटक जाये कारवां,
फ़िर किसी रहबर कि राह पे क्यूं कर चलेगा ये जहां!
सम्भालों कि दर्द उम्मीद पे न हावी हो पाये!
सुन्दर रचना!
बेहद सुन्दर प्रस्तुति !
भावपूर्ण रचना के लिये बधाई !
बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..
सुंदर प्रस्तुति....
आपको
दशहरा पर शुभकामनाएँ ..
जो नही थे माँगे हमने,
दिए खुद ही उन्होंने वादे,
वादा फरोशी हुई उन्ही से,
बर्बादी के जश्न खूब मने,
ज़ोर शोर से हमारे आंगन मे...
इल्ज़ाम सहे हमी ने...
ऐसे ही नसीब थे हमारे...
भावविभोर करने वाली रचना.
Happy Birthday to you !
*******आदरणीया शमा जी *******
~*~ जन्मदिवस की हार्दिक बधाई !~*~
~*~~*~मंगलकामनाएं ! ~*~~*~
~*~~*~शुभकामनाएं !~*~~*~
अच्छी काव्य रचना है , लेकिन , कृपया , अब कुछ सुखांत कविताएं भी लिख कर ब्लॉग में डालें !
साभार …
- राजेन्द्र स्वर्णकार
बहुत सुन्दर रचना !
जन्मदिन की बधाइयाँ !
Post a Comment