आपने बरगद देखा है,कभी!
जी हां, ’बरगद’,
बरर्गर नहीं,
’ब र ग द’ का पेड!
माफ़ करें,
आजकल शहरों में,
पेड ही नहीं होते,
बरगद की बात कौन जाने,
और ये जानना तो और भी मुश्किल है कि,
बरगद की लकडी इमारती नहीं होती,
माने कि, जब तक वो खडा है,
काम का है,
और जिस दिन गिर गया,
पता नही कहां गायब हो जाता है,
मेरे पिता ने बताया था ये सत्य एक दिन!
जब वो ज़िन्दा थे!
अब सोचता हूं,
मोहल्ले के बाहर वाली टाल वाले से पूछुंगा कभी,
क्या आप ’बरगद’ की लकडी खरीदते हो?
भला क्यों नहीं?
क्या बरगद की लकडी से ईमारती सामान नहीं बनता?
पता नहीं क्यों!
4 comments:
प्रसंशनीय भाव!
Raaste chaude karte samay maine 200 saal purane bargad dharashayi hote dekhe....aur ise ham adhogati nahi pragati kahte hain!
Aur gar makanon me iski lakdi istemaal me aati to bargad hame kewal tasveeron me dikhte!
Bahut ,bahut sundar rachana!
अति सुन्दर भाव
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गुलाबी कोंपलें
The Vinay Prajapati
Sahi kaha..bahut accha likha
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