'प्लीज़' "कविता" पर भी! क्यों नहीं!
इस बार ऐसा करना,
जब बिना बताये आओ,
किसी दिन
तो
चुपचाप
चुरा कर ले जाना,
जो कुछ भी,
तुम्हें लगे,
कीमती,
मेरे घर,
जेहन,
या शख्शियत में,
प्लीज़!
गर ये भी न हो पाया,
तो ,
मैं,
टूट जाउंगा,
क्यों कि सुना है,
मुफ़लिसी
इन्सान को
खोखला कर देती है!
10 comments:
क्यों कि सुना है,
मुफ़लिसी
इन्सान को
खोखला कर देती है!
bahut hi sundar panktiyaan aur sundar rachna bhi ,bha gayi man ko .
वाह! बहुत सुन्दर !
चोर को मुफलिसी से बचने के लिए अपना घर लुटाना ...
क्या कहूँ ... मानवता ...खुद मिट कर दूसरों को आबाद करने की चाह ...??
बहुत सुन्दर रचना|
Leoji,Kya kamal karte hain aap har baar!
असरदार रचना....
बधाई.
अच्छी रचना ।
वाह...मुफलिसी इंसान को खोखला कर देती है...बहुत खूब...सच को बयां किया है
बहुत ही सुन्दर रचना
बधाइयाँ...........
चुपचाप
चुरा कर ले जाना,
जो कुछ भी,
तुम्हें लगे,
कीमती,
मेरे घर,
जेहन,
या शख्शियत में,
प्लीज़!
शमाजी ,
सचमुच चुराने लायक प्रस्ताव। कितनी पीड़ा और घातक शब्दों में आपने अपने सामाजिक सरोकार के प्रति अपनी प्रतिबद्धता प्रकट की है। बहुत उत्कृष्ट चिन्तन...
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