Monday, October 26, 2009

काश...!

कितने' काश' लिए बैठे थे दिल में,
खामोश ज़ुबाँ, बिसूरते हुए मुँह में,
कब ,क्यो,किधर,कहाँ, कैसे,
इन सवालात घेरे में,
अपनी तो ज़िंदगानी घिरी,
अब, इधर, यहाँ यूँ,ऐसे,
जवाब तो अर्थी के बाद मिले,
क्या गज़ब एक कहानी बनी,
लिखी तो किसी की रोज़ी बनी,
ता-उम्र हम ने तो फ़ाक़े किए,
कफ़न ओढ़ा तो चांदी बनी...

12 comments:

'sammu' said...

हर 'काश ' में एक बेबसी है ,शायद पछतावा भी .तो काश छोडिये . आकाश को छू लीजिये .

बाद बर्बादी के गर उनका सलाम आया तो क्या ?
उठ चुकी अर्थी तो फिर उनका पयाम आया तो क्या ?

Yogesh Verma Swapn said...

umda rachna.

Yogesh Verma Swapn said...

umda rachna.

kishore ghildiyal said...

kashh ke ye kashh naa hota..... behad achhe shabdo ka umda prayog

jyotishkishore.blogspot.com

Dr. Amarjeet Kaunke said...

bahut vadhia.....

ओम आर्य said...

काश ............

Unknown said...

पता नहीं क्यों ?
जब भी आपको पढता हूं............

दर्द का एक समन्दर मुझे घेर लेता है...........

वेदना की लहरें उत्ताल हो जाती हैं..........

ऐसा लगता है मानो.........

पीड़ा और कसक आपकी भाषा में इतने घुलमिल गए हैं कि अलग करना मुश्किल है.............

बहरहाल....... बहुत अच्छी कविता

अभिनन्दन आपका..............दिल से !

मस्तानों का महक़मा said...

बहुत खूब...
अच्छा लगा पढ़कर...

Murari Pareek said...

ता-उम्र हम ने तो फ़ाक़े किए,
कफ़न ओढ़ा तो चांदी बनी..
लाजवाब !! कहानी बनी और लिखी तो किसी की रोजी बनी ! कितने भावार्थ हैं !!!

R. Venukumar said...

कितने' काश' लिए बैठे थे दिल में,
क्या गज़ब एक कहानी बनी,
लिखी तो किसी की रोज़ी बनी,
ता-उम्र हम ने तो फ़ाक़े किए,
कफ़न ओढ़ा तो चांदी बनी...

सुन्दर रचना ,
नये नये सोच और मुहावरों से गीतों और गजलों की दुनिया रोज आबाद हो रही है। आपका योगदान नई हलचल पैदा करता है ं कुछ धनक होती है जिनका इंतजार रहता है। कृप्या अपने डेशबोर्ड पर ये कुछ पते है जिन्हे जोड़कर आप उन तमाम लोगों तक पहुंच सकते हैं जो गीत और ग़ज़ल
के गांव बसा रहे हैं:

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http://anjuribhargeet.blogspot.com,
http://kumar.zahid.blogspot.com

Amit K Sagar said...

क्या कहूं इस रचना के लिए...निशब्द हूँ.

दीपक 'मशाल' said...

'Kash' aisa main bhi likh pata :)
Jai hind...