उसकी तस्वीर के शीशे से
गर्द को साफ़ किया मैने,
उंगली को ज़ुबान से नम कर के,
पर ’वो’ नहीं बोली!
मेरी आंखे नम थीं,
पर ’वो’ नहीं बोली,
शायद वो बोलती,
गर वो तस्वीर न होती,
या शायद
गर वो मेरी तरह
गम ज़दा होती
इश्क में!
वो नहीं थी!
न तस्वीर,
न तस्सवुर,
एक अहसास था,
जिसे मैने ज़िन्दगी से भी ज़्यादा जीने की कोशिश की थी!
टूट गया!
क्यो कि
ख्याब गर जो न टूटे,
तो कहां जायेंगे?
जिन के दिल टूटे हैं
वो खुद को भला क्या समझायेंगे!
शायद ये के:
"टूट जायेंगे तो किरचों के सिवा क्या देगें!
ख्याब शीशे के हैं ज़ख्मों के सिवा क्या देंगें,"
11 comments:
ohhhhhh...........dard se bheegi ,ek ek zakhm ko ujagar karti rachna.....behtreen.
या शायद
गर वो मेरी तरह
गम ज़दा होती
इश्क में!
waah
Waah kahun yaa kahun, uff ! ' sach' hai, khwab sheeshe ke hain, zakhmon ke siva kya denge?
kahane ko shabd kam pad gaye ............behad sundar rachana!
ज़िन्दगी की ख़ूबसूरती तथा रिश्तों की पाक़ीज़गी का अहसास मन को गहरे भिंगो देता है।
वो दर्द ही क्या जो उस आंख को भी न भिगो दे, जिसे कभी दर्द का अहसास ही न हुआ हो, जिन दर्द के अहसासों को मैने उंकेरने की कोशिश की वो सफ़ल हुई,आप सब का तहे दिल से शुक्रिया!
कभी कभी "सच म्रें" (www.sachmein.blogspot.com) पर भी आने की इनायत करें!
दाद का शुक्रिया एक बार फ़िर दिल की गहराईयों से!
"टूट जायेंगे तो किरचों के सिवा क्या देगें!
ख्याब शीशे के हैं ज़ख्मों के सिवा क्या देंगें,"....
बहुत खूब लिखा है ........... दर्द की गहरी लकीर नज़र आ रही है इस शेर में ...... भीगे हुवे एहसास की बूंदे चकम रही हैं इस कविता में ............ बहुत ही लाजवाब लिखा है ..................
"टूट जायेंगे तो किरचों के सिवा क्या देगें!
ख्याब शीशे के हैं ज़ख्मों के सिवा क्या देंगें,"
bahut khoob. umda rachna.
वो नहीं थी!
न तस्वीर,
न तस्सवुर,
एक अहसास था - जिसे मैने ज़िन्दगी से भी ज़्यादा जीने की कोशिश की थी!
waahhhhhhh... jindgi ehsaas hi ho hai..
kisi ke dil ke dard ko udelti si hai ye kavita...
fir ek baar sundar rachna ke liye badhai..
Jai Hind...
आप सब का तहे दिल से अहसानमन्द हूं, समय और आपके विचार देने के लिये!
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