चमन को हम साजाये बैठे हैं,
जान की बाज़ी लगाये बैठे हैं.
तुम को मालूम ही नहीं शायद,
दुश्मन नज़रे गडाये बैठे हैं.
सलवटें बिस्तरों पे रहे कायम,
नींदे तो हम गवांये बैठें हैं
फ़ूल लाये हो तो गैर को दे दो,
हम तो दामन जलाये बैठे हैं.
मयकदे जाते तो गुनाह भी था,
बिन पिये सुधबुध गवांये बैठे हैं.
सच न कह्ता तो शायद बेह्तर था,
सुन के सच मूंह फ़ुलाये बैठे हैं.
13 comments:
वाह क्या खूब कहा
सलवटें बिस्तरों पे रहे कायम,
नींदे तो हम गवांये बैठें हैं
आपकी ग़ज़ल पर एक शे'र कहने को दिल कर रहा है
कल रात दिखाकर मीठा सपना,
जो सेज को सूना छोड़ गया,
हर सलवट से फिर आज उसी,
मेहमान की ख़ुशबू आती है।
बढ़ा दो अपनी लौ
कि पकड़ लूँ उसे मैं अपनी लौ से,
इससे पहले कि फकफका कर
बुझ जाए ये रिश्ता
आओ मिल के फ़िर से मना लें दिवाली !
दीपावली की हार्दिक शुभकामना के साथ
ओम आर्य
Leo ji,
Bade dinon kee khamoshee ke baad aagman behad achha laga...aapkee rachnayen' kavita' ko nikhar pradan kartee hain...
bade hi khoobsurat ehsaas
शमा जी,
"कविता" और "सच में" (www.sachmein.blogspot.com)
के सभी पाठकों के आपके Blog के माध्यम से
"शुभ दीपावली" may god light of knowledge and happiness be all around.
behatareen rachna,,,,,,,,,,आपको और आपके परिवार को दीपावली की मंगल कामनाएं.
खूबसूरत हैं सब शेर .......... लाजवाब ग़ज़ल है ......
ये दीपावली आपके जीवन में नयी नयी खुशियाँ ले कर आये .........
बहुत बहुत मंगल कामनाएं .........
आप सब का तहे-दिल से शुक्रिया ,हौसलाअफ़ज़ाई का "सच में" और "कविता" के प्रति प्रेम बनाये रखें!
बेहतरीन गज़ल सबके सब शेर बढिया ।
bahut hi sundar sher........ek se badhkar ek hai
Bahut he badhiyan likha hai..
ek maine bhi likhi thi gaur farmaiyega-
'Mere bistar pe
neend jaag rahi thi
aur main
tab tak
kursi pe uneenda baitha
sooni deewar pe
na jane kitni
puraani yadon ke
chalchitra dekh aaya...'
lajwab kar diya aapne magar...
jai Hind...
Dipakji,
Aapki ye rachna aapke blog pe padhi thi, behad sundar hain...aap har kisee ke takkar ka likhte hain...!
Post a Comment