उस किनारेसे महरूम हैं लोग, खामोश हैं लहरें जाने क्यों? उस किनारे के सौन्दर्य से नावाकिफ़ होंगे लोग. जब पता लग जायेगा तो ताता लग जायेगा. बहुत सुन्दर रचना
bas yahi kahungi ki bahut badhiyaa likhti hain aap....
कुछ दीये खरीदने हैं, कामनाओं की वर्तिका जलानी है ..... स्नेहिल पदचिन्ह बनाने हैं लक्ष्मी और गणेश का आह्वान करना है उलूक ध्वनि से कण-कण को मुखरित करना है दुआओं की आतिशबाजी , मीठे वचन की मिठास से अतिथियों का स्वागत करना है और कहना है जीवन में उजाले - ही-उजाले हों
11 comments:
एक और उम्दा गज़ल. कई भाव समेटे है अपने आप में.
achcha prayas.
उस किनारेसे महरूम हैं लोग,
खामोश हैं लहरें जाने क्यों?
उस किनारे के सौन्दर्य से नावाकिफ़ होंगे लोग. जब पता लग जायेगा तो ताता लग जायेगा.
बहुत सुन्दर रचना
कई बार मौसम अपने पूरे सौन्दर्य के साथ नही आता ......ऐसे मे सभी जगह उदासी और गम का महौल का हो जाना वाजिब है .......एक सुन्दर अभिव्यक्ति !
bas yahi kahungi ki bahut badhiyaa likhti hain aap....
कुछ दीये खरीदने हैं,
कामनाओं की वर्तिका जलानी है .....
स्नेहिल पदचिन्ह बनाने हैं
लक्ष्मी और गणेश का आह्वान करना है
उलूक ध्वनि से कण-कण को मुखरित करना है
दुआओं की आतिशबाजी ,
मीठे वचन की मिठास से
अतिथियों का स्वागत करना है
और कहना है
जीवन में उजाले - ही-उजाले हों
bahut hi piari kavita hai...
Waah kitnee sundar shubhkamna bhejee hai aapne aapkee rachna dwara...'kavita' blog pe...!
Apka lekhan padhne aayee thee...par kisee karan ab nahee derse padh paungee..!
Meree orse unheen alfaazme aapko dheron shubhkamnayen!
लहरों की खामोशी और खाली नैय्या
समां बांध दिया आपने तो
उस किनारेसे महरूम हैं लोग,
खामोश हैं लहरें जाने क्यों?
"एक शमा की सब वफ़ायें जब हवा से हो गयीं,
बे चिरागां रास्तों क लुत्फ़ ही जाता रहा."
" सच में " पर ktheleo.
behtreen khyalon ko sanjoya hai.
यह किनारा हो की चाहे हो कोई उस पार भी,
उल्फतों की एक नदी हो मौज हो जिसका सहारा .
उस किनारे के लिए खामोश सी कश्ती सजी है,
हैं अभागे लोग जो कर लेते हैं कोई किनारा .
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