१)बहारों के लिए...
बहारों के लिए आँखे तरस गयीं,
खिज़ा है कि, जाती नही...
दिल करे दुआए रौशनी,
रात है कि ढलती नही...
२)शाख से बिछडा...
शाखसे बिछडा पत्ता हूँ कोई,
सुना हवा उड़ा ले गयी,
खोके मुझे क्या रोई डाली?
मुसाफिर बता, क्या वो रोई?
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10 comments:
बहुत हीं सुन्दर क्षणिकायें । आभार
sunder.
waah kya baat hai
sundar gahan bahv.
नदी के दो कूल
मिलने को व्याकुल
कोई पथिक गया है विदेश
प्रेयसी का मिला नहीं सन्देश
अश्रुधारा लहरों मे मिल गयी
उसकी व्यथा नदी में घुल गयी
मेरे पुराने काव्य संग्रह से मेरी रचना
BAHOOT HI KHOOBSOORAT EHSAAS HAIN DONO RACHNAAYEN ......
कमाल का लिख रहीं हैन आज कल आप! वाह के अलावा क्या कहा जा सकता है!
बहारों के लिए आँखे तरस गयीं,
खिज़ा है कि, जाती नही...
दिल करे दुआए रौशनी,
रात है कि ढलती नही...ati sundar .badhai ho .
शाख से पत्ते का बिछडना क्या मौसमे आती है और जाती है ........मौसमो के वाबजूद कभी कभी कोई कोई शाखे आभागी भी होती है ......
१-
खिज़ा बहार का एक सिलसिला तो जारी है
धूप और छाँव का यह खेल सब पे भारी है .
२-
हर पत्ते की बिछुडन पे रोती है सदा डाली
बतलाये क्या मुसाफिर पत्ता कहाँ से आया
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