सहमी सिमटी है दुल्हनिया,
अभी छलके हैं इस के नैना,
यादों में है बाबुल अपना!
आँखों से कजरा बह गया,
बालों में गजरा मुरझाया,
हैं हिनाभरी हथेलियाँ,
याद आ रही हैं सहेलियाँ...
दादी औ माँ में उलझा है ज़ेहन,
उसमे बसा है नैहरका आँगन,
धूप में बरसती सावनी फुहार,
फूल बरसाता हारसिंगार...
गीली मिट्टी पे मोलश्री के फूल,
नीम के तिनकों में पिरोये हार,
मेलों के तोहफे,बहनका दुलार,
अभी यही है,इसका सिंगार!
13 comments:
दादी औ माँ में उलझा है ज़ेहन,
उसमे बसा है नैहरका आँगन,
धूप में बरसती सावनी फुहार,
फूल बरसाता हारसिंगार...
भावुक करने वाली कविता है दीदी.
बेहद सुन्दर!
najuk savednao se bhri kavita..
बेहतरीन कविता...
नववधू के मनोभावों का उत्तम चित्रण किया है आपने...
सुंदर चित्रण दुल्हन के मनोभावों का ।
पर
मन में है उत्कंठा
मन में हे उत्सुकता
कैसा होगा साजन
जिसको अब देना है तनमन
फिर भी ना ना ना छूना ना ।
उसमे बसा है नैहरका आँगन,
धूप में बरसती सावनी फुहार,
फूल बरसाता हारसिंगार...heart touching,
सुंदर प्रस्तुति
dulhan kee dasha ko darshaata behtarin chitran
dulhan kee dasha ko darshaata behtarin chitran
नाजुक भावों से सजी सुंदर रचना.
गीली मिट्टी पे मोलश्री के फूल,
नीम के तिनकों में पिरोये हार,
मेलों के तोहफे,बहनका दुलार,
अभी यही है,इसका सिंगार!
sunder bhav ki panktiyan
rachana
गीली मिट्टी पे मोलश्री के फूल,
नीम के तिनकों में पिरोये हार,
मेलों के तोहफे,बहनका दुलार,
अभी यही है,इसका सिंगार!
बहुत सुन्दर चित्रण क्षमा जी!
नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं
Ak dulahn ki mansik sthitiyon ka bejod rekhankan .....bahut khoob ...badhai.
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