Wednesday, November 30, 2011

दुल्हनिया...!


ना,ना,न छूना घूंघटा,
सहमी सिमटी है दुल्हनिया,
अभी छलके हैं इस के नैना,
यादों में है बाबुल अपना!

आँखों से कजरा बह गया,
बालों में गजरा मुरझाया,
हैं हिनाभरी हथेलियाँ,
याद आ रही हैं सहेलियाँ...

दादी औ माँ में उलझा है ज़ेहन,
उसमे बसा है नैहरका आँगन,
धूप में बरसती सावनी फुहार,
फूल बरसाता हारसिंगार...

गीली मिट्टी पे मोलश्री के फूल,
नीम के तिनकों में पिरोये हार,
मेलों के तोहफे,बहनका दुलार,
अभी यही है,इसका सिंगार!

13 comments:

वन्दना अवस्थी दुबे said...

दादी औ माँ में उलझा है ज़ेहन,
उसमे बसा है नैहरका आँगन,
धूप में बरसती सावनी फुहार,
फूल बरसाता हारसिंगार...
भावुक करने वाली कविता है दीदी.

अनुपमा पाठक said...

बेहद सुन्दर!

avanti singh said...

najuk savednao se bhri kavita..

Neeraj Kumar said...

बेहतरीन कविता...
नववधू के मनोभावों का उत्तम चित्रण किया है आपने...

Asha Joglekar said...

सुंदर चित्रण दुल्हन के मनोभावों का ।
पर
मन में है उत्कंठा
मन में हे उत्सुकता
कैसा होगा साजन
जिसको अब देना है तनमन
फिर भी ना ना ना छूना ना ।

Dr.NISHA MAHARANA said...

उसमे बसा है नैहरका आँगन,
धूप में बरसती सावनी फुहार,
फूल बरसाता हारसिंगार...heart touching,

www.navincchaturvedi.blogspot.com said...

सुंदर प्रस्तुति

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" said...

dulhan kee dasha ko darshaata behtarin chitran

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" said...

dulhan kee dasha ko darshaata behtarin chitran

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...

नाजुक भावों से सजी सुंदर रचना.

Rachana said...

गीली मिट्टी पे मोलश्री के फूल,
नीम के तिनकों में पिरोये हार,
मेलों के तोहफे,बहनका दुलार,
अभी यही है,इसका सिंगार!
sunder bhav ki panktiyan
rachana

Dr.R.Ramkumar said...

गीली मिट्टी पे मोलश्री के फूल,
नीम के तिनकों में पिरोये हार,
मेलों के तोहफे,बहनका दुलार,
अभी यही है,इसका सिंगार!

बहुत सुन्दर चित्रण क्षमा जी!
नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं

Naveen Mani Tripathi said...

Ak dulahn ki mansik sthitiyon ka bejod rekhankan .....bahut khoob ...badhai.