१) मीलों फासले..
मीलों तय किए फासले
दिन में पैरों ने हमारे,
शाम हुई तो देखा,
हम वहीँ खड़े थे,
वो मील का पत्थर,
सना हुआ धूलसे,
छुपा था चन्द झाडियों में,
जहाँसे भोर भये,
हम चल पड़े थे,
हम क्यों थक गए?
क्या हुआ जो,
क़दम रुक गए?
२) खुशी या दर्द?
गर मै हूँ खुशी किसीकी,
मत छीनना मुझे कि,
छीन के मिल सकती नही...
हूँ मै दर्द तुम्हारा,
मत लौटाना मुझे,कि,
मै लौट सकती नही ...
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12 comments:
bahut gahre bhav.
वाह!
गर मै हूँ खुशी किसीकी,
मत छीनना मुझे कि,
छीन के मिल सकती नही...
हूँ मै दर्द तुम्हारा,
मत लौटाना मुझे,कि,
मै लौट सकती नही ...
sunder abhivyakti.
बहुत सुन्दर क्षणिकायें हैं दी. खुद से सवाल करती हुईं...बहुत सुन्दर.
.....शाम हुई तो देखा,
हम वहीँ खड़े थे,
वो मील का पत्थर
सना हुआ धूल से....
दोनों रचनाएं भावपूर्ण हैं
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
wah !! kitna sahi kaha hai...
बहुत सुंदर भाव लिये हैं ये आपकी क्षणिकाएं ।मील का पत्थर तो कमाल का है ।
क्या खूब भाव में कही है... सुन्दर.
बहुत कुछ कह गए वो चंद भीगे हुए से शब्द
बहुत सुन्दर भाव लिए सुन्दर रचना
बहुत बहुत आभार
हूँ मै दर्द तुम्हारा,
मत लौटाना मुझे,कि,
मै लौट सकती नही ...
aise kavita to whi likh sakta hai jis par aap beet hui ho...
bahut hi sunder bhavo se sampreshit kavita
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