Monday, January 11, 2010

२ क्षणिकाएं...

१) मीलों फासले..

मीलों तय किए फासले
दिन में पैरों ने हमारे,
शाम हुई तो देखा,
हम वहीँ खड़े थे,
वो मील का पत्थर,
सना हुआ धूलसे,
छुपा था चन्द झाडियों में,
जहाँसे भोर भये,
हम चल पड़े थे,
हम क्यों थक गए?
क्या हुआ जो,
क़दम रुक गए?

२) खुशी या दर्द?

गर मै हूँ खुशी किसीकी,
मत छीनना मुझे कि,
छीन के मिल सकती नही...

हूँ मै दर्द तुम्हारा,
मत लौटाना मुझे,कि,
मै लौट सकती नही ...

12 comments:

vandana gupta said...

bahut gahre bhav.

ktheLeo (कुश शर्मा) said...

वाह!

Yogesh Verma Swapn said...

गर मै हूँ खुशी किसीकी,
मत छीनना मुझे कि,
छीन के मिल सकती नही...

हूँ मै दर्द तुम्हारा,
मत लौटाना मुझे,कि,
मै लौट सकती नही ...

sunder abhivyakti.

वन्दना अवस्थी दुबे said...

बहुत सुन्दर क्षणिकायें हैं दी. खुद से सवाल करती हुईं...बहुत सुन्दर.

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

.....शाम हुई तो देखा,
हम वहीँ खड़े थे,
वो मील का पत्थर
सना हुआ धूल से....
दोनों रचनाएं भावपूर्ण हैं
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

Rishi said...

wah !! kitna sahi kaha hai...

'sammu' said...
This comment has been removed by a blog administrator.
Asha Joglekar said...

बहुत सुंदर भाव लिये हैं ये आपकी क्षणिकाएं ।मील का पत्थर तो कमाल का है ।

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

क्या खूब भाव में कही है... सुन्दर.

रचना दीक्षित said...

बहुत कुछ कह गए वो चंद भीगे हुए से शब्द

Pushpendra Singh "Pushp" said...

बहुत सुन्दर भाव लिए सुन्दर रचना
बहुत बहुत आभार

Dr. Tripat Mehta said...

हूँ मै दर्द तुम्हारा,
मत लौटाना मुझे,कि,
मै लौट सकती नही ...
aise kavita to whi likh sakta hai jis par aap beet hui ho...

bahut hi sunder bhavo se sampreshit kavita