मिलेगी कोई गोद यूँ,
जहाँ सर रख लूँ?
माँ! मै थक गयी हूँ!
कहाँ सर रख दूँ?
तीनो जहाँ ना चाहूँ..
रहूँ, तो रहूँ,
बन भिकारन रहूँ...
तेरीही गोद चाहूँ...
ना छुडाना हाथ यूँ,
तुझबिन क्या करुँ?
अभी एक क़दम भी
चल ना पायी हूँ !
दर बदर भटकी है तू,
मै खूब जानती हूँ,
तेरी भी खोयी राहेँ,
पर मेरी तो रहनुमा तू!
(maa pe likhe aalekh me yah rachana likhi thee)
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8 comments:
बेहद भावुक कर देने वाली रचना. सुन्दर.
जीवन का सुन्दरतम क्षण, सिर हो माँ की गोदी में.
बालों में अंगुलियाँ हों, नींद आ जाये गोदी में.
नींद आये गोदी में, शीतल बयार भीनी-भीनी.
सपना एक मीठा सा आकर, काया करदे भीनी.
कह साधक सबके ही मनका भाव है यह सुन्दरतम.
सिर हो माँ की गोदी में, क्षण जीवन का सुन्दरतम.
hriday sparshi rachna.
शमा साहिबा, आदाब
मां के पाकीज़ा रिश्ते का कोई विकल्प हो ही नहीं सकता
बेहद भावपूर्ण नज्म है आपकी
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
मिलेगी कोई गोद यूँ,
जहाँ सर रख लूँ?
माँ! मै थक गयी हूँ!
कहाँ सर रख दूँ?
Rashmi ji
Bhavnathmak Rachana
Bilkool Maan ki Tarah
Vaah!Kamaal Ki abhivyakti!
सुन्दर भाव लिए अच्छी रचा
बहुत बहुत आभार
मिलेगी कोई गोद यूँ,
जहाँ सर रख लूँ?
माँ! मै थक गयी हूँ!
कहाँ सर रख दूँ?...
माँ ......... बस एहसास ही काफ़ी है ......... सुंदर रचना .......
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